Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥२४६।
कर्मकर पाबादितहे ज्ञान जिसका अतिदुर्लभ मनुष्यदेह पाई तोभी आत्महितको नहींजानेहै रसना का लोलुपीस्पर्श इंद्रीका विषयी पांचही इंद्रीयोंके बशभया अति निन्य पापकर्मकर नरकविषे पड़े हैं जैसे पाषाण पानीमें डूबेहै । कैसाहे नरक अनेक प्रकारकर उपजे जे महा दुख तिनका सागरहै महा । दुखकारीहे जे पापी क्रूर कर्माघनके लोभीमातापिता भाईपुत्र खीमित्र इत्यादि सुजन तिनको हनेहें जगत | में निन्छह चित्त जिनका वे नरकमें पड़े तथा जे गर्भ पातकरे हैं तथा बालक हंल्याकरें, वृद्धको हणे] हैं अवलास्त्रियों की हत्या करे हैं मनुष्योंको पकड़े हैं रोके हैं बांधे हैं मारे हैं पची तथा मृगनको हने । हैं जे कुबुद्धि स्थलचर जलचर जीवोंकी हिंसा करे हैंधर्म रहितहें परिणाम जिनका वे महा वेदनारूप जो नरक उस विषे पड़े और जे पापी शहदके अर्थ मधु मासीयोंका छाता तोडे हैं तथा मास अहारी मद्यपानी शहदके भक्षण करनेहारे बनके भस्म करनेहारे तथा ग्रामोंके बालनहारे बन्दीके करणहारे । गायनके घेरनहारे पशुघाती मझ हिंसक भील अहेड़ी वागरा पारधी इत्यादि पापी महा नरकमें पड़े। हैं और जे मिथ्यावादी परदोषके भाषणहारे अभचके भक्षण करनेहारे परधनके हरनहारे परदारा के । रमनेहारे वेश्यायोंके मित्रहैं वे घोरनरकमें पडे हैं जहां किसीकी शरण नहीं जे पापी मांसका भतण करें । हैं वे नरकमें प्राप्त होयहें वहां तिनहीका शरीर काट २ तिनके मुखविषे दीजिये, और ताते लोहे के। गोले तिनके मुखमें दीजिये हैं और मद्यपान करनेवालोंके मुखमें सीसा गाल २ ढारिएहै और परदारा लंपटियोंको तातीलोहेकी प्रतलियोंसे आलिंगन करावेहैं जे महापरिग्रहके धारी महाश्रारम्भी कूर है | : चित्त जिनका प्रचंड कर्मके करनहारेहें वे सागरां पर्यन्त नरकमें बसेहें साधुनोंके द्वेषी पापी मित्थ्यादृष्टि
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