Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥२३२॥
सामताके सिर पडे परंतु मान बोडा शुरवीर्यको युद्ध में मस्त प्रियह स्कर नीमा त्रिय नहीं वे चतुर महा धोरवीर महा पराक्रमी महा मुमः यशको स्वो करते हुए शौक धारक प्राण त्याग करत भए परन्तु कायर होकर अपयश न लिया कोई इक सुभट मस्ता हुचाभी रीके मारपेकी अभिलाषा कर कोषका भय रीयो ऊपर जाय पडा उसको मार आप पप किसीक हायसे शत्र शत्रुके शत्रपात कर निपति भए तरह सामन्त मुष्टिरूप जो मुद्गरे उसके पतिकर शत्रुको प्राण रहित करता मया कोई एक महा मैंट शत्रुनी को भुजाओंसे मित्रवत आलिंगन कर मसल भरता भया कोइएक सामंत परे चक्रके योधायकी पक्तिको रणता हुवा अपने पक्षक योधाओंका मार्गसुख करता भया कोईयक जो रणभूमि में परते सन्तमी परियाको पीट न दिखावते भए सूधे पडे रावण और इन्द्रके युद्धमें हाथी थोड़े स्थ योपा हजारौं पड़े पहिले जो रज उठी थी सो मदोन्मस हाथियों के मदझरनेकर तथा सामन्तोंके रुधिर प्रवाहकर दंबगई सामन्तोंके आभूषणोंके रत्नोंकी ज्योतिकर श्राकाशमें इंद्र धनुष होगया | कोई एक योधा बायें हाथकर अपनी प्रोता थाभकर खडग का वैरी ऊपर गया महाभयंकर कोईयक योधा अपनी प्रान्तही कर गाडी कमर बांधहोंठ डसता शत्रु अपरगया कोई एक आयुध रहित होय । गया तोभी रुधिरका रंगा रोस विषे तत्पर बैंग के माथेमें हस्तका प्रहार करताभया कोई एक रणथी महाशुरबीर युद्ध का अभिलाषी पाशकर बैरीको बांध कर छोड देता भया रणकर उपजाहै हर्ष जित
कै कोई एक न्याय संग्राम में तत्पर बैरी को श्रायुधरहित देखकर आपभी श्रायुध डार खडे लेय | रहे कोई एक अन्तसमय सन्यास धार नमोकार मन्त्रका उच्चारण कर स्वर्गप्राप्त भए कोई एक योषा
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