Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुसख
॥२३०॥
णांत होगया श्रीमालीको मारकर इंद्रका पुत्र जयंत शंखनाद करता भया तब राचसोंकी सेना भयभीत मई और पीछेहटी माल्यवानके पुत्र श्रीमालीको प्राण रहित देख और जयंतको उद्यत देख रावण के पुत्र इंद्रजीतने अपनी सेनाको धीर्य बंधाया और कोपकर जयंतकेसन्मुख आया सो इंद्रजीतने जयंत का बक्तर तोर डारा और अपने बाणोंकर जयंतको जर्जरा किया तब इंद्र जयतको घायलदेख छेदागया | हे वक्तर जिसका रुधिरकर लालहोगयाहै शरीर जिसका ऐसा देखकर आप युद्धको उद्यमी भया आकाश ! को अपने प्रायुधोंकर श्राछादित करता हुवा अपने पुत्रकी मददके अर्थ रावणके पुत्रपर पाया तब रावण को सुमतिनामा सारथीनेकहा हे देव यह इंद्राया ऐसवतहाथीपर चढ़ालोकपालोंकर मंडितहाथमें चक्रधरे मुकटके रत्नोंकी प्रभाकर उद्यौत करता हुवा उज्वलछत्रकर मूर्यको प्राछादित करताहुवा चोभको प्राप्त भया ऐसा जो समुद्र उस समान सेनाकर संयुक्त यह इंद्र महाबलवानहै इंद्रजीत कुमार यासू युद्ध करने समर्थ नहीं इस लिये आप उद्यमी होकर अहंकार युक्त जो यह शत्रु इसे निराकरण करो तब रावण इंद्र को सन्मुख अाया देख भागे मालीका मरण यादकर और हाल श्रीमालीके वध कर महा क्रोध रूप भया
और शत्रुओं कर अपने पुत् को बेढ़ा देख श्राप दौडा पवन समानहे वेग जिसकाऐसे रथमें चढ़ादोनोंसेना के योघाओंमें परस्पर विषम युद्ध होताभया सुमटोंके रोमांच होयाए परस्पर शस्तों के निपात कर अन्धकार होगयारुधिरकी नदी बहने लगी योधा परस्पर पिछानेनपरें केवल ऊंचेशब्द कर पिलाने परें अपने अपने स्वामी के परेयोधा अति युद्ध करते भये गदाशक्ति बरछी मूसल खडग बाण परिघ जाति के शत्र कनक जातिके शस्त्रचक्र कहिये सामान्यचक्र बरछी तथा त्रिशूल पाशमुखन्डी जाति केशस्त्र कुहाडा मुदगर
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