Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
॥२२॥
ली मनुष्यों में महायोषा राक्षसशियोंका अधिपति माल्यकानका पुत्र है उसने बड़े २ देव मारे हैं औरये ।
मेर भानजे मारे इस राक्षसके सन्मुख मेर देवोंमें कौन आवे यह अतिवीर्यवान महातेजस्वी देखा न जाय | इसलिये में युद्धकर इसे हटाऊंनातर यह मेरे अमेरदेवोंको होगा असा विचार अपने जे देवजातिके विद्याधर
श्रीमाली से कम्पायमान भये थे तिनको धीर्य याय यात युद्ध करनेको उद्यमीभया तब इन्द्र का पुत्र जयंत बापके पायन पर बिनती करनेलगाहे वे मेरे होते. संते श्राप युद्धको तब हमारा जन्म निरर्थक है हमको श्रापने बाल अवस्थामें प्रति जडार अब तुम्हारे दिग शवों को युद्ध कर हटाऊं यहपुत्रका धर्म है श्राप निराकुल विराजिषे जो अंकूर नखले छेवाजाब उसपर फरसी उठवना क्या, ऐसाकहकरपिता कीबाजालेय मानों अपने शरीरकर आकाशको प्रसेगा पेसाको पायमान होय युद्धके अर्थ श्रीमालीपराया श्रीमाली इसको युद्ध योग्यजान खुशी हुया इसके सम्मुख गमे ये दोनोंही कुमार परस्पर युद्ध करने लगे धनुष खेंच बाण चलावतेभए इन दोनों कुवरों का बड़ा शुद्ध भया दोनोंही सेनाके लोक इनका युद्ध देखो भए सो इनका युद्ध देख आश्चर्यको प्राप्त भए श्रीमानीने सनक नामा इथियारकर जयंतकारथ तोड़ा.
और उसको घायल किया सो मूछा खाय पड़ा फिर सावेत होय लड़ने लगा श्रीमालीके भिंडमालकी दीनी रथ तोडा और मूर्छितकिया तब देवोमी सेमा प्रतिवर्ष मया और राक्षसोंको शोच भया फिर श्रीमाली समेत भया जयंतके सन्मुख गया होमों में मुखश्या झेनों सुभट राजकुमार युद्ध करते शोभते भए मानों सिंहके बालकहीहें बड़ीबेरमें इंद्रके पुत्र असंतनेमाश्यपानका पुत्र जो श्रीमालीउसके ग्रहाकी बातीमें रीनी सो पृथ्वीपर पड़ा बदनकर अधिर पडने समा तत्काल जैसे सूर्य अस्त होजाय तैसे मा
For Private and Personal Use Only