Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
पद्म | नहीं में तुमको उसकेपास लेजाऊहूं जो निरन्तर तुम्हारे मिलापकी अभिलाषिनीहै तब यह मनमें विचारते ॥१५८०
भए कि यह मिष्टभाषिणीपर पीड़ा कारिणी नहीं है इसकी प्राकृति मनोहर दीखे है और आज मेरी दाहिनी अांखभी फड़के है इसलिये यह हमारी प्रियाकी सङ्गम कारिणी है फिर इसको पूछा हे भद्रे तू अपने प्रावने का कारण कह तब वह कहै है कि सूर्योदय नगर में राजा शक्रधनु राणी घी और पुत्री जयचन्द्रा वह गुणरूपी से मदसे महा उनमत्त है कोई पुरुष उसकी दृष्टि में न आवे पिता जहांपरणाया चाहेसो यह माने नहीं मैंने जिस जिस राज पुत्रों के रूप जित्र पटपर लिख दिखाए उनमें कोइ भी उसके चित्त में न रुचे तब मैंने तुम्हारे रूपको चित्राम दिखाया तब वह मोहित भई और मुझको ऐसा कहती भई कि मेरा इस नर से संयोग न होय तो मैं मृत्यु को प्राप्त होऊंगी और अधम नरसे सम्बन्ध न करूंगी तब मैंने उसको धीर्य बन्धाया और ऐसी प्रतिज्ञा करी कि जहां तेरी रुचि है में उसे न लाऊं तो अग्नि में प्रवेश करूंगी अति शोकवन्त देख मैंने यह प्रतिज्ञाकरी उसके गुण से मेरा चित्त हरागया है सो पुण्यके प्रभावसे आप मिले मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण भई ऐसा कह सूर्योदय नगरमें लेगई राजाशक्रधनुसे ब्योरा कहा राजाने अपनी पुत्रीका इनसे पाणीग्रहण कराया और वेगवती का बहुत यशमाना इनका विवाह देख परिजन और पुरजन हर्षित भए बर कन्या अद्भुत रूप के निधान हैं इनके विवाह की वार्ता सुन कन्या के मामा के पुत्र गंगाधर महीधर क्रोधायमान भए कि कन्या ने हमको तजकर भूमिगोचरी वरा यह विचारकर युद्धको उद्यमीभए तब राजा शकधनु हरिषेण से कहता भया कि में युद्ध में जाऊं श्राप नगरमें तिष्ठो वे दुराचारी विद्याधर युद्धकरनेको पाए हैं तब हरिषेण सुसर से कहते भए कि जो पराए
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