Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
१११
प्रम यह विचागकि जो महावीर्यवान पराक्रमीहै उनके एक खडगहीका सहाराहे तवमन्दोदरीने हाथ जोड़ बिनती
करी हे प्रभू आप प्रगटलौकिकस्थिति ज्ञाताहो अपनेघरकी कन्या औरको देनी और औरोंकी श्राप लेनी इनकन्याओंकी उत्पत्ति ऐसीही है और खरदूषण चौदह हजार विद्याधरों का स्वामी है विद्याधर कभी भी युद्धसे पीछे न हटें बड़े बलवानहें और इस खरदूषणको अनेक सहस्रविद्या सिद्धहैं महागवंतहै आपसमान शूरवीर है यह बार्ता लोकोंसे क्या आपनेनहीं सुनी है आपके और उसके भयानक युद्ध प्रवरतेतबभी हारजीतका संदेह ही है और वह कन्याहर लेगयाहै हरणेकेकारण वह कन्या दूखितभई है सोखरदूषणकमारनेसे वह विधवाहोयह
और सूर्यरजको मुक्तिगए पीछे चंद्रोदर विद्याधर पाताललंका थानेथा उसे काढ़कर यह खरदूषण तुम्हारी बहिन सहित पाताललंका तिष्ठहै तुम्हागसंबंधीहै तबरावण बोले हे प्रिये में युद्धसे कभी नहीं डरूं परंतु तुम्हारे बचन नहीं उलंघने और बहिन विधवा नहीं करणी सो हमने क्षमाकरी तब मन्दोदरी प्रसन्न भई। __ कर्भके नियोगसे चंद्रोदर विद्याधर कालको प्राप्त भया तब उसकी स्त्री अनुराधा गर्भिणी विचारी भयानक बनमें हिरणीकी न्याई भ्रमै उसने मणिकांत पर्वतपर सुन्दर पुत्र जना शिला ऊपर पुत्र का जन्म भया शिला कोमल पल्लव और पुष्पोंके समूहसे संयुक्तहै अनुक्रमसे बालकवृद्धिको प्राप्त भया यह बन बासिनी माता उदास चित्त पुत्रकी अाशासे पुत्रको पाले जब यह पुत्र गर्भमें आया तबहीसे इनके माता पिताको बैरियों से विराधना उपजी इस लिये इसका नाम विराधित धरा यह विराधित राजसम्पदा वर्जित जहां जहां राजाओं के पास जाय वहां वहां इसका आदर न होय सो जैसे सिरका केश स्थानक से छूट अदा न पावे से जो निज स्थानकसे रहित होय उसका सनमान कहांते होय सो यह
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