Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पुराण
• २२१ ।।
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पांडुकबन गया और नलकूवर लोकपाल ने अपने निज वर्गसे मन्त्रकर नगरकी रक्षामें तसर विद्यामय सौ योजन ऊंचा वज्रशाल नामाकोट बनाया प्रदक्षिणाकर तिगुना रावण ने नलकूबर का नगर जानने के हस्त नामा सेनापति भेजा सो जायकर पीछे आय रावणसे कहताभया हे देव मायामई कोट कर मण्डित वह नगरहै सौ लिया न जाय देखो प्रत्यक्ष दीखे है सर्व दिशाओं में भयानक विकराल दाढ़ को घरे सर्पसमान शिखर जिसके और बलता जो सघन बांसन का बन उस समान देखा न जाय ऐसा ज्वाला समूह कर संयुक्त उठे हैं स्फुलिंगों की राशि जिसमें और इसके यंत्र बैताल का रूप घरे विकराल हैं दाद जिनकीएक योजनके मध्यजो मनुष्य यावे उसको निगले हैं तिन यंत्रविषे प्राप्तभए जे प्राणियों के समूह तिनका यह शरीर न रहे जन्मांतर में और शरीर घरे ऐसाजानकर आप दीर्घदर्शी हो सो इसनगर के लेनेका उपाय विचारो तब रावण मन्त्रियों से उपाय पूछने लगे सो मन्त्री मायामई कोटके दूर करने का उपाय चितवते भये कैसे हैं मन्त्री नीति शास्त्र में अति प्रवीण हैं ।
अथानन्तरनलकूवरकी स्त्री उपरम्भा इन्द्रकी अपसरा जो रम्भा उस सपान है गुण और रूप जिसका पृथिवीपर प्रसिद्ध सो रावण को निकट याया सुन प्रति अभिलाषा करती भई आगे रावण के रूप गुण श्रवणकर अनुरागवती श्रीही सो रात्रि के विषे अपनी सखी विचित्रमाला को एकांत में ऐसे कहती भई कि हे सुन्दरी मेरे तू प्राण समान सखीहै तुझसमान और नहीं अपना और जिस का एक मन होय उसको सखी कहियेमे रे में और तेरे में भेदनहीं इसलिये हे चतुरे निश्चय से मेरे कार्यका साधन तू करे तो तुझे अपने जीकी बात कहूं जे सखी हैं वे निश्चयसेती जीतव्य का अवलम्बन होय हैं जब ऐसे राणी
For Private and Personal Use Only