Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
.१
कर जलको गालेहये सुवण के समान पीत करती भई कैयक ताम्बूलकै रङ्गकरलाल जे अधर तिनके प्रक्षालन कर नीरको अरुण करती भई कैयक आंखों के अंजन घोवनेकर श्याम करती भई सो क्रीडा करती जे स्त्री उनके आभूषणोंके सुन्दर शब्द और तीर विषे जे पक्षी उनके मुन्दर शब्द राजाके मनको मोहित करते भये और नदीके निवासकी ओर रापण का कटकथा सो रावण स्नानकर पवित्र वस्र पहिर नाना प्रकारके आभूषणोंसे युक्त नदी के रमणीक पुलिन में बालूका चौतरा बँधाय उसके ऊपर वैड्य मणियों के दंड जिसके ऐसा मोतियोंकी झालरी संयुक्त चन्दोवाताण श्रीभगवान अरिहंत देवकी नाना प्रकार पूजा करेथा बहुत भक्ति से पवित्र स्तोतों कर स्तुति करेथा सो उपरास का जलका प्रवाह पाया सो पूजा में विघ्न भया नानप्रकारकी कलुषता सहित प्रवाह वेग दे आया तब रावण प्रतिमा जीको लेय खड भये और क्रोधकर कहते भये जो यह क्या है सो सेवकने खबर दीनी कि हे नाथ यह कोई महा क्रीडावन्त पुरुष सुन्दर स्त्रियोंके बीच परम उदयको घरे नाना प्रकारकी खीलाकरे है और सामन्त लोक शास्त्रोंको घरे दूर दूर खड़े हैं नानाप्रकार जलके यन्त्र वांधेथे उनसे यह चेष्ठा भई है राजाओं के सेना चाहिये इसलिये उसके सेना तो शोभा मात्रहै और उसके पुरुषार्थ ऐसाहै जो और ठौर दुर्लभहै बड़ेर सामंतों से उसका तेज न सहा जाय और स्वर्गविषे इन्द्र हैं परन्तु यहतो प्रत्यचही इन्द्र देखा यह वार्ता सुनकर रावण क्रोधको प्राप्त भये भौंह चढ़गई प्रांस साल होगई ढोल वाजने लगे वीररस का राग होने लगा नानाप्रकार के शब्द होप हैं घोड़े हीसे हैं गज गाजे हैं रावण ने अनेक राजाओंको आज्ञा करी कि यह सहस्ररश्मि दुष्टात्माहे इसे पकड़ लावो ऐसी मानाकर आप नदीके तटपर पूजा करनेलगे रत्न सुवष के
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