Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
'पुराख
पद्म श्रावे तब शत्रुका तथा मित्रका कारण पाय जीवको कल्याणकी बुद्धि उपजे और पापकर्मके उदयकर । ४१५॥
दुर्बुद्धि उपजे जो कोई प्राणीको धर्मके मार्गमें लगावे सोई परममित्रहै और जो भोग सामग्री में प्रेरे सो परमबैरीहै अस्पृश्यहै हे श्रेणिक जो भब्यजीव यह राजा सहस्ररश्मिंकी कथा भावधर सुनेसो मुनिव्रत रूप संपदाको प्राप्त होकर परम निर्मल होंय, जैसा सूर्यके प्रकाशकर तिमिरजाय तैसे जिन बाणी के प्रकाशकर मोह तिमर जाय । अश्वानन्तर रावणने जेजे पृथ्वी विष मानी राजा सुने तेते सर्व निवाए अपने वश किए और जो आप मिले तिनपर बहुत कृपा करी अनेक राजाओं से मंडित सुभृत चक्र वर्तकी न्याई पृथ्वी में बिहार किया नाना देशके उपजे नाना भेषके धरणहारे नाना प्रकार आभूषण के पहरनेहारे नाना प्रकारकी भाषाके बोलनहारे नाना प्रकारके वाहनोंपर चढ़े नानाप्रकारके मनुष्योंकर मंडित अनेकराजा उनसहित दिग्विजयकरता भया ठौर२ रत्नमईसुवर्णमई अनेकजिनमंदिर कगये औरजर्णि चैत्यालयोंके जीर्णोद्धार कगयादेवाधिदेव जिनेंद्रदेवकीभावसहित पूजाकरीठौर :२ पूजाकराई जो जैनधर्म। के देषीदुष्ट मनुष्य हिंसकथेतिनको शिक्षादीनी और दरिद्रीयोंको दयाकर धनसे पूर्ण किया और सम्यकदृष्टी श्रावकोंका बहुत अादर किया साधर्मियोंपरहै बहुत वात्सल्यभाव जिसका रिजलं मुनि सुने वहां जाय भक्तिकर प्रणामकरे जे सम्यक्त रहित द्रव्यलिंगी मुनि और श्रावकथे तिनकी भी शुश्रूषा करी जैनी मात्रका अनुरागी उत्तरदिशाको दुस्सह प्रतापप्रगट करता विहार करता भया जैसे उत्तरायणके मूर्यका अधिक प्रताप होय तैसे पुण्यकर्म के प्रभावसे रावणका दिन दिन अधिक तेज होता भया। 'अयानंतर रावणने सुना किराजपुरका राजा बहुत बलवान है अतिवाभिमानको धरता हुवा किसीको
For Private and Personal Use Only