Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
॥२०३
जिसकी आयु क्षीण होयह सो माताको गोदमें बैठाही मृत्युके वश होयहै ये सर्व संसारी जीव कों । के आधीन, भगवान सिद्ध परमात्मा कर्म कलंक रहित हैं ऐसा जानाहै तत्वज्ञान जिसने महा निर्मल बुद्धिकर बालकको बनमें तजकर यह ब्राह्मणी विकल्प रूप जो जड़ता उसकर रहित अलोक नगरमें आई जहां इन्द्रमालिनी नामा आर्या अनेक आयाओंकी गुरुनी थी तिनके समीप आर्या भई सुंदर है चेष्टा जिसकी और आकाशके मार्ग जंभनामा देव जातेथे सो पुण्याधिकारी रुदनादिरहित उन्हों ने । वह बालकदेखा दयावानहोय उठायलिया बहुत आदरसे पाला अनेक आगम अध्यात्मशास्त्र पढ़ाये सिद्धांत का रहस्य जाननेलगामहापंडितहुआ आकाशगामिनी विद्या सिद्धभई यौवनको प्राप्तभयाश्रावकके व्रतधारे । शीलबत विषेप्रत्यंतदृढ़ अपने माता पिताजे पार्यिका मुनि भएथे तिनकी बन्दना करे कैसाहै नारद सम्यक दर्शनविषे तत्पर ग्यारमी प्रतिमाके कुल्लुक श्रावकके व्रतलेय बिहार किया परंतु कर्मके उदयसेतीत्र वैराग्य ।। नहीं न गृहस्थी न संयमीधर्म प्रियहे ओर कलहमी प्रियह वाचालपनेमें प्रीतिहे गायन विद्या प्रवीण | और राग सुननेमें विशेष अनुराग वालाहै मन जिसका महा प्रभावकर युक्त राजाओंकर प्रजित जिस की आज्ञा कोई लोप न सके पुरुष त्रियोंमें सदा जिसका सन्मानहै अढाई द्वीप विष मुनि जिन चैत्या। लयोंका दर्शन करे सदा धरती आकाश विषे भूमता ही रहे कौतृहल में लगीहै दृष्टि जिसकी देवन कर वृद्धि पाई और देवन समाम है माहमा जिसकी विद्याके प्रभाव कर किया है अद्भुत उद्योत जिसने सो पृथ्वी विषे देव ऋषि कहावे सदा सर्वत्र बिहार करे ।
अथानन्तर नाम्द विहार करते हुए अकस्मात मरुत के यज्ञकी भूमि ऊपर पाय निकसेसो बहुत
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