Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
पभोपासनेमि राम दिया और सुश्रीषको राजपद दिया अपने स्वजन परजन समान जाने चोर
यह चतुरगति रूप जगत महा दुखकर पीड़ित देख विहतमोह नामा मुनि के शिष्य भए जैसा भग॥१७॥
वानने भाषा तैसा चारित्र धारा मुनि सूर्यरजको शरीर से ममत्व नहीं है आकाश सारिखा निर्मल अन्तः करणहै समस्त परिग्रह रहित पवनकी न्याई पृथ्वी विष बिहार करते भए विषय कषाय रहित मुक्ति के अभिलाषी भए बाली के ध्रुवा नामास्त्री महा पतित्रता गुणों के उदय से सैकड़ों राणियोंमें मुख्य उस सहित अति ऐश्वर्यको घरै राजा बाली बानर बंशियों के मुकट विद्याधरों के अधिपति सुन्दर चरित्रवान देवों कैसे सुख भोगते हुए किहकन्धपुर में राज करें।
रावणकी बहिन चन्द्रनखा जिसके सर्वगात्र मनोहर राजा मेघप्रभका पुत्र खरदूषणने जिस दिन से इसको देखा उस दिनसे कामबाणकर पीड़ित भया इसको हरा चाहेहै । सो एक दिन रावण राजा प्रवर राणी अावली उनकी पुत्री तनुदरी उसके अर्थ एक दिन रावण गए सो खरदूषणने लंका रावण बिना खाली देख चिन्ताराहित होय चन्द्रनखा हरी खरदूषण अनेक विद्याका धारक मायाचारमें प्रवीण है दोनों भाई कुंभकर्ण विभीषण बड़े शूरबीर हैं परन्तु मौका पाकर मायाचार से इसने कन्याकोहरी तब वे क्या करें उसके पीछे सेना दौड़ने लगी तब कुंभकर्ण विभीषणने यह विचार कर मनह करी कि खरदूषण पकडा नहीं जावेगा और मारणा योग्य नहीं फिर रावण पाए तब यह बार्ता सुनकर
अति क्रोध किया यद्यपि मार्गके खेद से शरीर पर पसेव ाया हुआ था. तथापि तत्काल खरदूषण पर || जान को उद्यमी भए रावण महा मानी है एक खडगही का सहाय लिया और सेनाभी लार नलीनी
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