Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पळ करी बाली मुनि केवलज्ञानको प्राप्त भए अष्टकर्मसे रहित होय तीन लोकके शिखर अविनाशी स्थान पुराण में अविनाशी अनुपम मुखको प्राप्त भए और रावणने मनमें विचारा कि जोइन्द्रियों को जी तिन
को मैं जीतिबे समर्थ नहीं इस लिये राजाओंको साधुओंकी सेवाही करनी योग्यहै ऐसा जान साधुवों की सेवामें तत्पर होता भया सम्यकदर्शन से माण्डत जिनेश्वर में दृढ़ है भाक्ति जिसकी काम भोगमें अतृप्त यथेष्ट सुख से तिष्ठता भया। __ज्योतिपुर नामा नगर वहां राजा अग्निशिख राणी ही उनकी पुत्री सुताराजो सम्पूर्ण स्त्री गणों से पूर्व सर्व पृथ्वी में रूप गुण की शोभासे प्रसिद्ध मानों कमलोंका निवास तज साक्षात् लक्ष्मी ही
आईहै और राजा चक्रांक उसकी राणी अनुमति तिनका पुत्र साहसगतिमहादुष्ट एकदिन अपनी इच्छा से भ्रमणकरथा सो उसने सुताराको देखा देखकर काम शल्यसे अत्यंत दुखी होकर निरंतर सुताराको मन में धरता भया दशा जिसकी उनमत्तहे ऐसा दूत भेज सुताराको याचता भया और सुग्रीव भी बारम्बार याचता भया वह सुतारा महा मनोहर है । तब राजा अग्निशिख सुताराका पिता दुविधामें पड़ गया कि कन्या किसको देनी तब महाज्ञानी मुनिको पूछी मुनीन्द्रने कहा कि साहसगति की अल्प
आयुहै और सुग्रीव को दीर्घ आयु है तब अमृत समान मुनिके बचन सुनकर राजा अग्निशिख सुग्रीवको दीर्वायु वाला जानकर अपनी पुत्रीका पाणीग्रहण कराया सुग्रीवका पुण्य विशेष है जो सुताराकी प्राप्ति भई तदनतर मुग्रीव और सुताराके अंग और अंगद दोय पुत्र भए और वह पापी साहसगाते निर्लज्ज सुताराकी आशा छोड़े नहीं धिक्कारहै काम चेष्टा को वह कामारिन कर दग्ध
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