Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण ११५६।।
पद्म विद्यासे कोऊ भूमै तैसे ये पृथ्वीमें भ्रमण करते भए । मान नगर बन उपवन लताओंके मंडपमें इन
को कहीं भी चैन नहीं कमलों के बन दावानल समान दीखें और चन्द्रमाकी किरण बजकी सुंई समान दीखै और केतकी बरछी की अणी समान दीखै पुष्पोंकी सुगन्ध मनको न हरे चित्तमें ऐसा चिंतवते भए जो में यह स्त्रीरत्न बरूं तो में जायकर माताका भी शोक संताप दूर करूं । नदियों के तटपर और बन में ग्राममें नगरमें पर्वतपर भगवानके चैत्यालय कराऊं यह चिंतवन करते हुवे अनेक देश भूमते सिंधुनंदन नगरके समीप पाए हरिषेण महा बलवान अति तेजस्वी हैं वहां नगरके बाहिर
अनेक स्त्री क्रीडाको आई थीं एक अंजनगिरि समान हाथी मद झरता स्त्रियोंके समीप पाया महा वतने हेला मारकर स्त्रियोंसे कही कि यह हाथी मेरे बश नहीं तुम शीघही भागो तब वह स्त्रियां हरिषेण के शरणे आई हरिषेण परमदयालुहै महायोधाहे वह स्त्रियोंको अपने पीछे करके आप हाथी के सन्मुखभएपौरमनमें विचारी किवहां तो वेतापसदीनथे इसलिये उनसे मैंने युद्धन किया वे मृगसमानथे परंतु यहां यह दुष्टहस्ती मेरे देखतेस्त्री बालादिकको हने और मैं सहायन करूं सो यह क्षत्रीवृत्ति नहीं यह हस्ती इन बालादिक दीनजनको पीड़ादेनको समर्थहै जैसवैलसींगोंसे बंमईको खोदे परंतु पर्वतकेखोदनेको समर्थ नहीं
औरकोई वाणसे केलेकेवृक्षको छेदेपरंतु शिलाकोनछेदसके तैसेहीयहहाथीयोधावोंको उड़ायवेसमर्थ नहींतब श्रापमहावतको कठोर बचनसेकहीकि हस्तीको यहांसे दूरकर तवमहावतनेकही तभीबड़ाढीठहैहाथीकोमनुष्य जानैहै हाथी आपही मस्त होय रहाहै तेरी मौत आईहै अथवा दुष्ट ग्रह लगाहै तू यहां से बेगभाग, तब आप हंसे और स्त्रियों को तो पीछे कर दिया और आप ऊपरको उछल हाथी के दांतोंपर पगदेय कुम्भस्थल
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