Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
१६३॥
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उसने चरजको पकड़ लिया तब सूर्यरज आप युद्ध करने लगे बहुत युद्ध भया यमने श्रायुध का प्रहार किया सो राजा घायल होय मुर्छित भए तब अपने पचके सामंतोंने राजाको उठाय मरेला बन में ले जाय शीतोपचार कर सावधान किये यम महा पापीने अपनी यमपना सत्य करते हुए एक बंदी गृह बनाया है उसका नरक नाम धरा है वहां वैतरनी आदि सर्व विधि बनाई हैं जो जो उसने जीते और पकड़े वे सर्वं उस नरकमें बंद किए हैं सो उस नरकमें कैयक तो मर गए कैयक दुःख भोगें हैं वहां उस नरक में सूर्यरज और रचरज येभी दोनों भाई हैं यह वृतान्त में देखकर बहुत व्याकुल होय आप के निकट आया हूं आप उनके रक्षक हो और जीवनमूल हो उनके श्रापही विश्रामहैं और मेरा नाम शाखावली है मेरा पिता रणदच माता सुश्रोणी में रचरजका प्यारा चाकर सो आपको यह वृतान्त कहने को आयाहूं मैं तो आपकोजतावादेय निश्चित भयाञ्चपने पक्षको दुःखश्रवस्थामैजान आपको जो कर्तव्य होय सो करो तब रावणाने उसे दिलासा दिया और इसके घावका यत्न कराया अब तत्काल सूर्यरज र चरजके छुड़ावनेको महाकोष कर यमपरचले और मुसकरायकर कहतेभए कहा यमरंक हमसे युद्ध कर सकै जो मनुष्य उसने वैतरणी आदि क्लेश के सागर में डार राखे हैं मैं श्राजही उनको छुडाऊंगा और उस पापीने जो नरक बनाय राखा है उसे विंध्वस करूंगा देखो दुर्जन की दुष्टता कि जीवों को ऐसे संताप देहे यह विचारकर आप ही चले प्रहस्त सेनापति श्रादि अनेक राजा बडी सेनासे आगे दौड़े नाना प्रकारके बाहनों पर चढ़े शस्त्रों के तेजसे श्राकाशमें उद्योत करते अनेक बादित्रों के नाद होते महा उत्साहसे चले विद्याधरों के अधिपति किहकुंपुर के समीप गए सो दूरसे नगरके घरों की शोभा देखकर आश्चर्यको प्राप्त भए किहकूंपुर की दल
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