Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
॥१४४॥
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और शत्रु का कटक निकट आया देख रावण ने लाल नेत्र कीये और इनसे कहते भए तुम मेरा परा - क्रम नहीं जानी हो इसलिए ऐसे कहो हो काक अनेक भेले भए तो क्या गरुड़ को जीतेंगे एक सिंह का बालक अनेक मदनमत्त हाथियोंके मदको दूर करें है ऐसे रावणके वचन सुन स्त्री हर्षित भई और aaaaaaa प्रभो हमारे पिता और भाई और कुटम्बकी रक्षाकरो तब रावण कहते भये हे प्यारा होगा तुम भय मतकरो धीरता गहो यह बात परस्पर होय है इतनेमें राजाओं के कटक आए तब रावण विद्याके रचे विमानमें बैठ क्रोधसे उनके सन्मुख भया ते सकल राजा उनके योधाओंके समूह जैसे पर्वत पर मोटी धारा मेघकी बरसे तैसे बाणोंकी वर्षा करते भए रावण विद्याओं के सागरने शिलाओं से सर्व शस्त्र निवारे और कैयक को शिलासेही भयको प्राप्त कीए फिर मनमें विचारी कि इन रंकों के मारणेसे क्या इनमें जो मुख्य राजा हैं तिनहींको पकड़ लेवों तब इन राजावोंको तामस शस्त्रोंसे मूर्द्धित कर नाग पाश से बांधलिया तब इन छै हजार स्त्रियों ने बीनती कर छुड़ाए तब रावण ने तिन राजा
बहुत सुश्रूषा करी तुम हमारे परमहित सम्बन्धी हो तब वे रावणका शूरत्वगुण देख महा विनयवान रूपवान देख बहुत प्रसन्न भए अपनी अपनी पुत्रियोंका पाणिग्रहण कराया तीन दिन तक महा उत्सव प्रवरता वे राजा रावण की आज्ञा लेय अपने अपने स्थानको गए रावण मन्दोदरीके गुणोंकर मोहित है चित्त जिसका स्वयंप्रभ नगर में आए तब इसको स्त्रियों सहित या सुनकर कुम्भकरण विभोषण भी सन्मुख गए रावण बहुत उत्साह से स्वयंप्रभ नगरमें आए और सुरराजवत् रमते भए ।
कुंभपुरका राजा मन्दोदर ताके राणी स्वरूपा इसकी पुत्री तडिन्माला सां कुंभकर्ण जिसका प्रथम
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