Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
की बेटी सबही अनेक कलाकर प्रवीण उनमें ये मुख्य हैं मानों तीनलोक की सुन्दरताही मूर्ति घर कर १४३॥ विभूति सहित आई हैं सो रावण ने छैः हजार कन्या गन्धर्व विवाह कर परणी वेभी रावणसहित नाना प्रकारकी क्रीड़ा करती भई तब इनकी लारजे खोजे और सहेलीथीं इनके माता पिताओंसे सकलवृत्तांत आकर कहती भई तब उन राजाओं ने रावण के मारिएको क्रूरसामन्त भेजे ते भ्रकुटी चढ़ाए होठ स er नाना प्रकारके शस्त्रों की वर्षा करते भए ते सकल अकेले रावण ने क्षणमात्र में जीत लिये वह भागकर कांपते राजा सुरसुन्दर पै गए जायकर हथियार डार दिए और बीनती करते भये कि हे नाथ हमारी आजीवकाको दूर करो अथवा घर लूट लेवो अथवा हाथ पांव छेदो तथा प्राण हरो हम रत्नश्रवा का पुत्र जो रावण उससे लड़ने को समर्थ नहीं वे समस्त छै हजार राजकन्या उसने पर और उनके मध्य क्रीड़ा करे है इन्द्र सारिखा सुन्दर चन्द्रमा समान कांतिधारी जिसकी क्रूर दृष्टि देवभी न सहारसकें उसके सामने हम रंक कौन हमने घनेही देखे रथनूपुर का धनी राजा इन्द्र आदि इसकी तुल्य कोऊ नहीं यह परम सुन्दर महा शूरवीर है ऐसे वचन सुन राजा सुरनुन्दर महा क्रोधायमान होय राजा बुध और कनक सहित बड़ी सेना लेय किसे और भी अनेक राजा इनके संग भए सो आकाश में शस्त्रोंकी कांति से air करते आए इन सब राजावों को देख कर ये समस्त कन्या भयकर व्याकुल भई और हाथ जोड़ कर रावणसे कहती भईं कि हे नाथ हमारे कारण तुम अत्यन्त संशयको प्राप्त भए हम पुण्यहीन हैं आप उठकर कहीं शरण लेवो क्योंकि ये प्राण दुर्लभ हैं तिनकी रक्षा करो यह निकटही श्रीभगवन् का मन्दिर है तहां छिप रहो यह क्रूरखैरी तुमको न देख आपही उठ जावेंगे ऐसे दीन वचन स्त्रियों के सुन
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