Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥१४५०
पद्म नाम भानुकर्णया उसने परणी कैसेहें कुंभकर्ण धर्म विषे आसक्तहे बुद्धि जिनकी और महा योधा हैं पुराण | अनेक कला गुणमें प्रवीण, हे श्रेणिक अन्यमति लोक जो इनकी कीर्ति और भांति कहेहैं कि मांस
और लोहका भक्षण करतेथे छै महीना की निद्रा लेते थे सो नहीं इनका श्राहार बहुत पवित्र स्वाद रूप सुगन्ध था प्रथम मुनियों को आहार देय और आर्यादिक को श्राहार देय दुखित भुखित जीव को श्राहार देय कुटंब सहित योग्य आहार करतेथे मांसादिककी प्रवृति नहीं थी और निद्रा इन को अर्धरात्रि पीछे अलपथा सदा काल धर्ममें लवलीनथा चित्तजिनका । चर्म शरीर जो बड़े पुरुषोंको मूंग कलंक लगावे हैं ते महा पापका बंध करे, ऐसा करना योग्य नहीं।
दत्तिणश्रेणीमें ज्योतिप्रभ नामा नगर वहां राजा विशुद्धकमल राजामयका वड़ा मित्र उसके राणी नंदन माला पुत्री राजीव सरसी सो बिभीषणने परणी अति सुंदर उस राणी सहित विभीषण अति कौतूहल करते भए अनेक चेष्टा करते जिनको रतिकोले करते तृप्ति नहीं कैसे हैं विभीषण देवन समान परम सुंदर है प्राकार जिनका और राणी लक्ष्मी से भी अधिक सुंदर है लक्ष्मी तो पद्म कहिए कमल उस की निवासिनी है और यह राणी पद्मराग माणके महलकी निवासिनी है। . ____ अथानन्तर रावण की राणी मन्दोदरी गर्भवती भई सो इसको माता पिताके घर ले गए वहां इन्द्रजीत का जन्म भया इन्द्रजीत का नाम समस्त पृथ्वी विषे प्रसिद्ध हुआ अपने नानाके घर वृद्धि को प्राप्त भया सिंह के बालक की नाई साहसरूप उनमत्त क्रीडा करता भया रावण ने पुत्र सहित.. मन्दारी अपने निकद बुलाई सो आज्ञा प्रमाण आई मन्दोदरी के माता पिता को इनके विछोडेका ।
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