Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण ॥१४॥
वेग से पवन को जीते हैं तैसेही तुरंग और पयादयों के समूह समुद्र समान गाजते युद्ध के अर्थ चले देवों के विमान समान सुन्दर विमानोंपर चढ़े विद्याधर राजा वैश्रवण के लार चले और रावण इनके पहिलेही कुम्भकरणादि भाइयों सहित बाहिर निकसे युद्धकी है अभिलाषा रखती हुई दोनों सेनाओं का संग्राम गुञ्ज नामा पर्वत के ऊपर हुवा शस्त्रों के पात से अग्निही अग्नि दिखाई देनेलगी षड़गोंके घात से घोडौं के हीसिने से पयादों के नादसे हाथियों के गरजिनेसे रथोंके परस्पर शब्द से वादित्रों के बाजने से तथा बाणों के उग्र शब्द से इत्यादि भयानक शब्दों से रणभूमि गाजती भई घरती श्राकाश शब्दायमान होय रहे हैं वीर रसका राग होय है योघाओं को मद चढ़ रहा है यमके बदन समान चक्र तीक्ष्ण है घारा जिनकी और यम की जीभ समान षड्ग रुधिरकी धारा वर्षावन हारी और यमके रोम समोन सेल और यमकी आंगुली समान शर (बाण) और यमकी भुजा समान परिध (कुहाड़ा) और यमको मुष्टि समान मुदगर इत्यादि अनेक शस्त्रों से परस्पर महा युद्ध प्रवरता कायरों को त्रास और योधानों को हर्ष उपजा सामन्त सिरके बदले यशरूप घनको लेवे हैं अनेक राक्षस और कपि जातिके विद्याधर और यक्ष जातिके विद्याधर परस्पर युद्धकर परलोकको प्राप्त भए कुछ इक यक्षोंके आगे राक्षस पीछे हटे तब रावण अपनी सेनाको दवी देख आप रण संग्राम को उद्यमी भए महामनोज्ञ सफेद छत्र रावणके सिरपर फिरै हैं काले मेघ समान चन्द्र मण्डलकी कांति का जीतनेवाला रावण धनुष वाण धारे इन्द्र धनुषसमान अनेक रंगका वकतर पहिरे शिरपर मुकट घरे नाना प्रकार के रत्नों के आभूषण संयुक्त अपनी दीप्ति से आकाश में उद्योत करता आया रावणको देखकर यक्ष जातिके विद्याधर क्षणमात्र में ।
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