Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
।।११७।।
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बीरों का चित्त क्षत्रिय व्रत में सावधान है भाईको इस भांति कह आप वैताड़के ऊपर सेना सहित क्ष मात्रमें गये सब विद्याधरों पर श्राज्ञा पत्र भेजे सो कैएक विद्याधरनने न माने उनके पुर ग्राम उजाड़े और उद्यान के वृक्ष उपर डारे, जैसे कमल के बनको मस्त हाथी उखाड़े तैसे राक्षस जाति के विद्याघर महा क्रोधको प्राप्त भए तब प्रजाके लोग मालीके कटक से डरकर कांपते संते रथनूपुर नगर में राजा सहसार के शरणे गये चरणों को नमस्कार कर दीन वचन कहते भए कि हे प्रभो सुकेश का पुत्र माली राक्षस कुली समस्त विजियार्थ में याज्ञा चलावे है हमको पीड़ा करे है आप हमारी रक्षाकरो तब सहमार ने आज्ञा करी कि हो विद्याधरो मेरा पुत्र इन्द्र है उसके शरण जाय बीनती करो वह तुम्हारी रक्षा करने को समर्थ है जैसे इन्द्र स्वर्गलोककी रक्षा करे है तैसे यह इन्द्र समस्त विद्याधरों का रक्षक है।
समस्त विद्याधर इन्द्र पै गये हाथ जोड़ नमस्कार कर सर्व वृत्तान्त कहा तब इन्द्र माली ऊपर महा कायमान हो गर्व कर मुलकते संते सर्वलोकों से कहते भए पास घरा जो बज्रायुध उसकी ओर देख इन्द्र ने लाल होगये हैं मैं लोकपाल लोककीरक्षा करूं जो लोकका कण्टक होय ताहि हेरकर मारू और वह आपही लड़नेको आया तो इस समान और क्या रण के नगारे बजाए वे वादित्र जिन के श्रवण से मस्त हाथी गजबन्धनको उखाड़े समस्त विद्याधर युद्धका साज कर इन्द्रपै आये वकतर पहरे हाथमें अनेक प्रकार के आयुध महा हर्ष से धरते संते केएक स्थोंपर कैंएक घोड़ों पर चढ़े तथा हस्ती ऊंट सिंह व्याघ्र स्याली तथा मृग हंस बेला वलद मांडा इत्यादि मायामयी अनेक वाहनों पर चढ़ आए एक विमान में बैठे कैएक मयूरों पर चढ़े कईएक खचरों पर चढ़े अनेक याए इन्द्रने जो लोकपाल थापे हैं वे
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