Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
॥१३॥
| और सिंहासनपर विराजे तब राजामयके मंत्री मारीच तथा बज्रमध्य और बजनेत्र और नभस्तड़ित
उग्रनक्र मरुध्वज मेधावी सारणशुक ये सवही रावणको देख बहुत प्रसन्न भए और राजामयसे कहते भए हे दैत्यश आपकी बुद्धि अति प्रवीणहै जो मनुष्योंमें महापदार्थ था सो तुम्हारे मनमें बसा इस भांतिमयस कहकर ये मयके मंत्री रावणसे कहते भए हे दशग्रीव हे महाभाग्य आपका अद्भुत रूप और महा पराक्रमहै और तुम अति विनयवान अतिशयके धारी अनुपम बस्तु हो यह राजामय दैत्यों का अधिपति दक्षिणश्रेणी में असुरसंगीत नामा नगरका राजाहै पृथ्वीमें प्रसिद्धहै हे कुभार तुम्हारे निर्मल गुणोंमें अनुरागी हुआ आयाहै तब रावणने इनका बहुत श्रेष्ठाचार किया और पाहुण गति करी और बहुत मिष्ट बचन कहे सो यह बड़े पुरुषोंके घरकी रीतिही है कि जो अपने द्वार आवे उसका श्रादर करें रावणने मयके मंत्रियोंसे कहा कि दैत्यनाथने मुझे अपना जान बड़ा अनुग्रह कियाहै तब मयने कहीं कि हे कुमार तुमको यही योग्यहै जो तुम सारिखे साधु पुरुपहें उनको सज्जनताही मुख्य है फिर रावण श्री जिनेश्वरदेवकी पूजा करनेको जिन मंदिरमें गए राजामयको और इसके मंत्रियोंको भी ले गए रावणने बहुत भावसे पूजाकरी खूब भगवानके आगे स्तोत्रपढ़े बारम्बार हाथ जोड़ नमस्कार किये। रोमांच होय पाए अष्टांग दण्डवतकर जिन मंदिरसे बाहिर आए रावणका अधिक अधिकउदय और । महा सुन्दर चेष्टाहै चूडामणिसे शोभे है शिर जिसका चैत्यालयोंसे बाहिर प्राय राजामय सहित आप सिंहासन पर विराजे राजासे वैताडके विद्याधरोंकी बात पूछी और मन्दोदरी की ओर दृष्टि गई तो देखकर मन मोहित भया मन्दोदरी सुन्दर लक्षणोंकर पूर्ण सौभाग्य रूपरत्नों की भूमि कमल समान
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