Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
दूर करे है और सूर्य उगताही काली घटा समान अन्धकारको दूर करे है इस प्रकार रावण अपनी पुराण छोटी उमर में हो अन्धकार रूपी वैरियों के दूर करने को सूर्य समान होता भया ।
॥१३७॥
दक्षिणश्रेणी में असुरसंगीत नामा नगर तहां राजामय विद्याधर बड़े योधा विद्याधरों में दैत्य कहावें जैसे रावण के बड़े राक्षस कहावें इंद्रके कुलके देव कहावें ये सब विद्याधर मनुष्य हैं । राजामयकी रानी हैमवती पुत्री मन्दोदरी जिसके सर्व गोपांग सुन्दर बिशालनेत्र रूप और लावण्यता रूपी जलकी सरोवरी इसको नवयोवन पूर्ण देख पिताको परणावनेकी चिन्ता भई तब अपनी राणी हैमवती से पूछा
प्रिये अपनी पुत्री मन्दोदरी तरुण अवस्थाको प्राप्त भई सो हमको बड़ी चिन्ता है पुत्रियों के यौन के आरम्भसे जो संताप रूप अनि उपजे उसमें माता पिता कुटंब सहित ईंधन के भावको प्राप्त हो हैं इस लिये तुम कहो यह कन्या किसको परणावें गुण कुल कांतिमें इसके समान होय उस को देना व राणी कहती भई हे देव हम पुत्री के जनने और पालने में हैं परणावना तुम्हारे श्राश्रय है जहां तुम्हारा चित्त प्रसन्न होय तहां देवो जो उत्तम कुलकी बालिका हैं ते भरतार के अनुसार चाले हैं जब राणी ने यह कहा तब राजाने मंत्रियोंसे पूछा तब किसीने कोई बताया किसीने इंद्र बताया कि वह सब विद्याधरोंका पति है उसकी आज्ञा लोपते सर्व विद्याधरडरे हैं तब राजामयने कही मेरी रुचि यह है जो यह कन्या रावणको दें क्योंकि उसको थोड़ेही दिनों में सर्व विद्या सिद्ध भई हैं इस लिये यह कोई बड़ा पुरुषहै जगतको आश्चर्यका कारण है तब राजाके बचन मारीच आदि सर्व मंत्रियोंने प्रयास किये वह मंत्री राजाके साथ कार्य में प्रवीणहैं तब भले ग्रह लग्न देख क्रूर ग्रह टार मारीचको साथ लेय राजा
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