Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
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मय कन्या परणवनेको कन्याको रावण पैलेचले रावण भीम नामा बनमें चन्द्रहास खड्ग साधने को आए और चन्द्रहासकी सिद्धिकर सुमेरुपर्वत के चैत्यालयोंकी बन्दना को गयेथे सो राजामय हलकारों के कहने से भीम नामा वन में श्राए वह बन मानों काली घटाका समूहही है जहां अति सघन और ऊंचे वृक्ष हैं बन के मध्य एक ऊंचा महल देखा मानों अपने शिखरसे स्वर्गको स्पर्शे है रावण ने जो स्वयंप्रभ नामा नवा नगर बसायाथा उसके समीपही यह नगर है राजामयने विमान से उतर कर महलके समीप डेरा किया और वादित्रादि सर्व चाडंबर छोड़कर कैयक निकटवर्ती लोकों सहित मन्दोदरी को लेय महल पर चढ़े सातवें खण में गए वहां रावणकी बहिन चन्द्रनखा बैठी थी चन्द्र नखा मानों साक्षात बन देवीही मूर्तिवन्ती है चन्द्रनखा ने राजामयको और उसकी पुत्री मन्दोदरी को देखकर बहुत आदर किया बड़े कुलके बालकों के यह लचणही हैं बहुत बिनय संयुक्त इनके निकट बैठी तब राजामय चन्द्रनाको पूछते भए कि हे पुत्री तू कौन है किस कारण बन में अकेली बसे है तब चन्द्रनखा बहुत विनयसे बोली मेरा बड़ा भाई रावण है बेला करके उसने चन्द्रहास खड्ग को सिद्ध किया है और अब मुझे खड्गकी रक्षा सौंप सुमेरुपर्वत के चैत्यालयों की बन्दना को गए हैं। मैं भगवान चन्द्रप्रभु के चैत्यालय में तिष्ठं हूं तुम बडे हित सम्बन्धी हो जो तुम रावणसे मिलने
हो तो चणइक यहां बिराजो इस भांति इनके बात होयही रही थीं कि रावण श्राकाश मार्ग से एतेजका समूह नजर आया तब चन्द्रनखाने राजामयसे कही कि अपने तेजसे सूर्य के तेज को हरता हुआ यह रावण आया है रावण को देख राजामय बहुत आदर से खड़े हुए और रावण से मिले
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