Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir
पञ्च || येहै. और मस्तक रहित धढ़ नजर आयें हैं और महा भयानक बज्रपात होय? कम्पायाहै समस्त पर्वत । IN जिसने और श्राकाशमें विखरि रहेहैं केश जिसके ऐसी मायामई स्त्री नजर श्रावेहै और गर्दभ [गधा]
आकाशकी तरफ ऊंची मुखकर खुरके अग्रभागसे धरती को खोदता हुवा कठोर शब्द करे है. इत्यादि अपशकुन होय हैं तब राजा माली सुमालीसे हंसकर कहत भए. राजा माली अपनी भुजाओंके बल से शत्रुओंको गिनते नहीं अही बीर बैरियोंको जीतनामनमें विचार विजय हस्तीपर चढ़े महापुरुष धास्ताको घरते कैसे पावाहु जो शूरवीर दांतोसे उसे हैं अघर जिन्होंने और टेढ़ी करी है भौंह जिन्हों ने और किराल है मुख जिनका और बैरीको डसने वाली हैं आंख जिन्होंकी तीक्ष्ण बाणोंसे पूर्ण
और बाजे हैं अनेक वाजे जिनके और मद भरते हाथियोंपर चढ़े हैं अथवा तुरंगनपर चढ़े हैं महा बीर रसके स्वरूप आश्चर्यकी दृष्टि से देवों ने देखे जो सामंत वे कैसे पाछे बाहु. मैंने इस जन्म में अनेक लीला विलास किये सुमेरु पर्वत की गुफा तहां नन्दन बन आदि मनोहर बन तिनमें देवां गना समान अनेक राणी सहित नाना प्रकारकी क्रीडा करी और आकाशमें लगे रहेहैं शिखरजिन के ऐसे रत्नोंके चैत्यालय जिनेन्द्र देवके कराए विधि पूर्वक भाव सहित जिनेन्द्रदेवकी पूजा करी और अर्थी जो याचेसो दिया ऐसे किमिछिक दान दिये इस मनुष्य लोकमें देवों कैसे भोग भोगे और अपने यशसे पृथ्वीपर बंश उत्पन्न किया इस लिये इस जन्ममें तो हम सब बातोंमें इच्छा पूर्ण हैं अब जो महा संग्राममें प्राणोंको तजें तो यह शूरवीरोकी रीतिहीहै परंतु क्या हम लोकोंसे यह कहावेंकि माली कायर हो | कर पीछे हटगया अथवा वहांही मुकाम किया यह निन्के लोकोंके शब्द धीरवीर कैसे सुने धीर
For Private and Personal Use Only