Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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। देवों के उपद्रव से मानों नए जन्म में आए तब यक्षों का पति अनावृत जम्बूद्वीप का स्वामी इनको पुराण ॥ १३३॥
विद्यायुक्त देखकर बहुत प्रस्तुति करताभया और दिव्य आभूषण पहराए रावणने विद्याके प्रभावसे स्वयंप्रभनगर वसाया वह नगर पर्वत के शिखर समान ऊंचे महलों की पंक्तिसे शोभायमान है और रत्नमई चैत्यालयों से अति प्रभाको धरे है जहां मोतियोंकी जाली से ऊंचे झरोखे शोभे हैं पद्मराग मणियों के स्तंभ हैं नानाप्रकार के रत्नोंके रङ्गके समूह से जहां इंद्र धनुष होय रहाहै रावण भाइयों सहित उस नगर में विराजे राज महलों के शिखर आकाश में लगरहे हैं विद्यावलकर मण्डित रावण सुख से तिष्ठे जम्ब द्वीप का अधिपति अनावृत देव रावण सो कहता भया कि हे महामते तेरे धीर्य से में बहुत प्रसन्नभयो
और में सर्व जम्बूद्रोप का अधिपति हूं तू यथेष्ट वैरियों को जीतताहुया सर्वत्र विहारकर हे पुत्र में प्रसन्न भया और तेरे स्मरणमात्र से निकट आऊंगा तबतुझे कोई भी न जीतसकेगा और बहुत काल भाइयों सहित सुखसो राजकर तेरे विभूति बहुत होवे इस भांति आशीर्वाद देय बारम्बार इसकी स्तुतिकर यक्ष परिवार सहित अपने स्थान को गया समस्त रोलवंशी विद्याधरों ने सुनी कि रत्नश्रवा का पत्र रावण महा विद्या संयुक्त भया सो सबको अानन्द भया सर्वही राक्षस बड़े उत्साह सहित रावण के पास पाए
एक सक्षस नृत्य करे हैं कैएक गान करें हैं कैएक शत्रु पक्षको भयकारी गाजें हैं कैएक ऐसे आनन्द से मरगये हैं कि आनन्द अंग में न समावें है केएक हंसे कैएक केलि कर रहे हैं सुमाली रावण का
दादा और उसका छोटा भाई माल्यवान तथा सूर्य रज रच ग्ज राजा वानरवंशी सबही सुजन आनन्द । सहित राक्पपे चले अनेक बाहनों पर चढ़े हर्ष से बाये हैं रत्नश्रवा रावसके पिता पुत्रके स्नेहसे भरगया।
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