Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद है मन जिसका ध्वजावों से आकाशको शोभित करताहुवा परम विभूति सहित महा मन्दिर समान रत्नन
के रथ पर चढ़ आया बन्दीजन विरद बाखाने हैं सर्वइकट्ठे होयकर पञ्च सङ्गमनामा परखतपर बाए रावण सन्मुख गया दादा पिता और सूर्यरज रक्ष रज बड़े हैं सो इनको प्रणाम कर पायन लगा और भाइयों को बगलगिरी कर मिला और सेवक लोगोंको स्नेहकी नजरसे देखा और अपने दादा पिता और सूर्यरज रचरज से बहुत विनयकर कुशलक्षेम पूछी फिर उन्होंने रावणसे पूछो रावणको देख गुरुजन ऐसे खुशी जो कहने में न आवे बारम्बार रावणसे सुखवार्ता पूवें और स्वयं प्रम नगरको देखकर आश्चर्य को प्राप्त भए देवलोक समान यह नगर उसको देख कर राक्षस वंशी और बानखंशी सवही अति प्रसन्न भए
और पिता रत्नश्रवा और माता केकसी पुत्र के गातको स्पर्शते हुये और इसको वारम्बार प्रणाम करता हुवा देखकर बहुत आनन्दको प्राप्त भए दुपहर के समय रावण ने बड़ोंको स्नान करावनेका उद्यमकिया तब सुमाली आदि रत्नों के सिंहासनपर स्नान के अर्थ विराजे सिंहासन पर इनके चरण पल्लव सारिखे कोमल और लाल ऐसे शोभते भए जैसे उदयाचल पर्वत पर सूर्य शोभे फिर स्वर्ण रत्नों के कलशों से स्नान कराया कलश कमल के पत्रों से प्राछादित हैं और मोतियों की माला से शोभे हैं और महा कांतिको धरे हैं और सुगन्ध जल से भरे हैं जिनकी सुगन्धसे दशों दिशा सुगन्धमई होयरहीहै और जिन पर भ्रमर गुञ्जार कर रहे हैं स्नान करोवते जब कलशों का जल डारिए है तब मेघ सारिखेगाजे हैं पहले सुगन्ध द्रव्यों से उबटना लगाया पीछे स्नान कराया स्नान के समय अनेक प्रकारके बादित बजे स्नान कराकर दिव्य वस्राभूषण पहराए और कुलवन्तनी राणियों मे अनेक मंगलाचरण कीए रावणादि तीनों
For Private and Personal Use Only