Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पाख
१९४०
पद्म जीताहे सूर्यका तेज जिसने और कांतिसे जीताहै चन्द्रमा और स्थिरतासे र्जाताहै पर्वत और विस्तीर्ण
है वक्षस्थल जिसका दिग्गजके कुम्भस्थल समान ऊंचेहें कांधे जिसके और अति दृढ़ सुंदरहें भुजा दश दिशाकी दाबनहारी और दोऊ जंघा जिसकी महा मुन्दर यौवनरूप महलके थांभनेको थंभे समान होती भई विजियार्घ पर्वत विषे सर्व विद्याधर जिसने सेवक किये जो यह आज्ञा करे सो सर्व करें यह महा विद्याधर बलकर मंडित इसने अपने यहां सब इन्द्र कैसी रचना करी अपना महल इन्द्र के महल समान बनाया अड़तालीस हजार विवाह किये पटरानी का नाम शची घरा छबीस हजार नट नृत्य करें सदा इन्द्र कैसा अखाढ़ा रहे महामनोहर अनेकइन्द्र केसे हाथी घोड़े और चन्द्रमा समान महा उज्ज्वल ऊंचा आकाश के आंगनमें गमन करनेवाला किसीसे निवारा न जाय महा बलवान अष्टदंतन कर शोभित गजराज जिसकी महा सुन्दर मूंड सोपाठ हाथी उसका नाम भैरावत धरा चतु रनिकायके देव थापे और परमशात युक्त चार लोकपाल थापे सोम १ वरुण २ कुवेर ३ यम ४ और सभाका नाम सुधर्मा बज्रायुध तीन सभा और उर्वशी मेनका रम्भा इत्यादि हजारां नृत्य कारिणी तिनको अप्सरा संज्ञा ठहराई सेनापतिका नाम हिरण्यकेशी और पाठ बमु थापे और अपने लोकों को सामानिक त्रायससतादि दश भेद देवसंज्ञा धरी गाने वालोंका नाम नारद १ तुम्बुरु २ विश्वासु ३ यह संज्ञा धरी मंत्रीका नाम वृहस्पति इत्यादि सर्व राति इन्द्र समान थापी सो यह राजा इन्द्र समान सर्व विद्याधरों का स्वामी पुण्यके उदयसे इन्द्र कैसी सम्पदा का धरन हारा होता भया उस समय लंकामें माली राज करे सो महा मानी जैसे आगे सर्व विद्याधरों पर अमल करे था तैसाही |
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