Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पमा भागकर विजिया में अपने २ स्वामकको गये और केएक कायर होय मालीही की शरमा पाए
माती प्रादि तीनों भाइयोंने लंकामें प्रवेश किया संका महा मंगल रूपहै माता पिता आदि समस्त परिवार को लेकामें बुलाया फिर हेमपुरका राजा म विद्याधर गही भोगवती तिनकी पुत्री चन्द्रमती खो मासीने परणी चन्द्रमती मनकी शानन्द करबहारी है और प्रीतिकूट नगरका राजा श्रीतिकांत राशी प्रीतिमती सिसकी पुरी प्रीतिसंज्ञका सो मुमालीने परणी और कनकांत नगरका राजा कनक गणी कमश्री तिनकी पुत्री कनकावधी मा माल्यवान ने परगणा इनके यह पहली राणी भई और प्रत्येक हजार १ सणी कळु इक अक्कि होती भई माल ने अपने पराक्रमसे विजिया की दोऊ श्रेणी वश करी सर्व विद्याधर इनकी आशा आशीर्वाद की न्याई माथे चढ़ावते भए केएक दिनों में इनके पिता गजा मुकेश माली को राज देय महा मुनि भए और राजा किहकंध अपने पुत्र सूर्यरज को राज देश वैरामी भए के दोऊ परम मित्र राजा मुकेश और किहकव समस्त इंद्रियोंके मुखको स्वाभकर अनेक भयके पापोंडा हरणहारा जो जिनधर्म उसको पायकर सिद्ध स्थान के निवासी भए हे श्रेणिक इस भांति अनेक राजा प्रथम अवस्था में अनेक विलास कर फिर राज तजकर प्रात्म ध्यान के योग से सभस पालो को मस्य कर अविनाशी धामको पास भए ऐसा जानकर हे राजा मोहका नाश कर शांति दशा को पास हो।
स्थमूल नगर में राजा सहस्रार यज्य कर उसके सणी मानमुन्दरी रूप और गुणों में अति सुदर सो गर्भिणी भई अत्यन्त करा भया है शरीर जिसका शिथिल होय गये हैं म आभूषण जिस
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