Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण ॥१११॥
स्नेहकर हमको ठगे जे शक्तिवंत हायेकर बिना काम किये निरर्थक गाजें हैं वह लोकमें लघुता को पावे हैं सो हमको निर्घातपर श्राज्ञा देवो हमारे यह प्रतिज्ञाहै लंकाको लेकर और काम करें तब माता पिताने महा धीर बीर जान इनको स्नेह दृष्टिसे आज्ञादी तब यह पाताल लंकासे ऐसे निकसे मानों पाताल लोकसे भवनबासी निकसे हैं बैरी ऊपर अति उत्साहसे चले तीनों भाई शस्त्र कला में महा प्रवीणहें समस्त राक्षसोंकी सेना इनके लार चली त्रिकुटावल पर्वत दूरसे देखा, देखकर जान लिया कि लंका नीचे बसेहै सो मानों लंका लेहीली मार्ग में निर्घातके कुटंबी जो दैत्य कहावें ऐसे विद्याधर मिले सो युद्ध करके बहुत मरे कैएक पायन परे कैएक स्थान छोड़ भाग गये कैएक बैरी कटक में शरण आए पृथ्वीम इनकी बड़ी कीर्ति विस्तरी निर्घात इनका आगमन सुन लंकासे बाहिर निकसा निर्घात युद्ध में महा शूर वीर है छत्रकी छायासे आच्छादित किया है सूर्य जिसने तब दोऊ सेना में महा युद्ध भया मायामई हाथियोंसे घोड़ोंसे विमानोंसे रथोंसे परस्पर युद्ध प्रवरता हाथियों के मद झरनसे श्राकाश जलरूप हो गया और हाथियोंके कान वह ही भए ताडके बीजने उनकी पवनसे आकाश मानो पवनरूप हो गया परस्पर शस्त्रों के घात से प्रगटी जो अग्नि उससे मानो श्राकाश अग्नि रूपही होगया इस भांति बहुन युद्ध भया तब मालीने विचारा कि दोनों के मारणे से क्या होय निर्घातही को मारिये यह विचार निर्यात पर श्राए ऐसे शब्द कहते भये कहां वह पापी निर्घात कहां वह पापी निर्यात है सो निर्घातको देखकर प्रथम तो तीक्ष्ण बाणोंसे रथसे नीचे डारा फेर वह उठा महा युद्ध किया तब मालीने खड्गसे निर्घातको मारा उसको मारा जानकर उसके वंशके
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