Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
॥१२॥
हठ पकड़ेगा उसकी न छोड़ेगा जिसको इन्द्र भी समझानेको समर्थ नहीं ऐसा पातका बचन सुनकर राणी परम हर्षको प्राप्त होय बिनय सहित भरतारको कहती भई । हे नाथ हम दोऊ जिनमार्ग रूप अमृतके स्वादी कोमल चित्त हमारे पुत्र क्रूरकर्मा कैसे होय । हमारे तो जिन बचनमें तत्पर कोमल परिणामी होना चाहिये अमृतकी बेलपर विष पुष्प कैसे लागे तब राजा कहते भए कि हे मुन्दर मुखी तू हमारे बचन सुन यह प्राणी अपने २ कर्मके अनुसार शरीर धरेहें इस लिये कही मूल कारण है हम मूल कारण नहीं हम निमित्त कारणहें तेग बडा पुत्र जिनधर्मी तो होयगा परंतु कुछ इक क्रूर परिणामी होयगा और उसके दो लघुवीर महाधीर जिनमार्गमें प्रवीण गुणमें पूर्ण भली चेष्टाके घारणहारे शील के सागर होवेंगे संसार भूमणका है भय जिनका धर्ममें अति दृष्टि महा दयावान सत्य बचनके अनु। रागी होवेंगे उन दोनोंके ऐमाही सोम्यकर्मका उदयहै, हे कोमल भाषिणी हे दयावती प्राणी जैसा कर्म करहै तैसाही शरीर धरहे ऐसा कहकर वे दोनों राजा और राणी जिनेन्द्रकी महा पूजा प्रवरते वे दोनों रात दिवस नियम धर्ममें सावधान हैं। ___ अथानन्तर प्रथमही गर्भमें रावमा अाए तब माताकी चेष्टा कुछ क्रूर होती भई यह बांछा भई कि बरियोंके सिरपर पांव धरूं राजा इंद्रके ऊपर आज्ञा चलाऊं बिना कारण भौहें टेढी करगी कठोर वाणी बोलना यह चेष्टा होती भई शरीरमें खेद नहीं दर्पख विद्यमानहे तोभी खड़गमें मुख देखना सखी जनसे खिक उठना किसीकी शंका न राखनी ऐसा उद्धत चेष्टा होती भई नवमें महीने रावणका जन्म भया जिस समय पुत्रजन्मा उससमय वेरियोंके श्रासन कम्पायमान भए मूर्य समानहै न्योति जिसकी ।
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