Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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भाई, राजा रोणी को देख उठे बहुत श्रादर किया दोऊ एक सिंहासनपर विराजे राणी हाथ जोड़ राजा | से विनती करती भई हे नाथ आज रात्री के चतुर्थ पहर में मैंने तीन शुभ स्वपन देखे हैं एक महा बली ०१२५०
सिंह गाजता अनेक गजेन्द्रों के कुम्भस्थल विदारता हुवा परम तेजस्वी आकाशसे पृथिवीपर आय मेरे मुख में होकर कुक्षि में पाया और सूर्य अपनी किरणों से तिमिरका निवारण करता मेरी गोदमें भाय तिष्ठा और चन्द्रमा अखण्ड है मण्डल जिसका सो कुमुदनको प्रफुल्लित करता और तिमिरको हरताहुवा मैंने अपने आगे देखा यह अद्भुत स्वप्न मेंने देखे सो इनके फल क्या तुम सर्व जानने योग्य हो स्त्रियों को पतिकी आज्ञाही प्रमाण है तब यह बात सुन राजा स्वप्नके फलका व्याख्यान करते भये राजा अष्टांग निमित्त के जाननहारे जिन मार्ग में प्रवीण हे हे प्रिये तेरे तीन पुत्र होंगे जिनकी कीर्ति तीन जगत् में विस्तरैगी बड़े प्राक्रमी कुल के बृद्धि करणेहारे पूर्वोपार्जित पुण्य से महा सम्पदा के भोगनेहारे देवों समान अपनी कांति से जीता है चन्द्रमा अपनी दीप्ति से जीता है सूर्य अपनी गम्भीरता से जीता है समुद्र और अपनी स्थिरतासे जीताहै पर्वत जिन्होंने स्वर्गके अत्यन्त सुख भोग मनुष्यदेह धरेंगे महाबलवान जिनको देवभीनजीत सकेंमनवांछित दानकेदेनेहारेकल्पवृक्षकेसमान और चक्रवर्तीसमान ऋद्धिजिनकी अपने रूपसे सुन्दर स्त्रियोंके मनहरणहारे अनेक शुभ लक्षणोंकर मंडित उतंग है वक्षस्थल जिनका जिनका नामही श्रवणमात्रसे महा बलवान बैरी भय मानेंगे तिनमें प्रथम पुत्र पाठवां प्रतिवासुदेव होयगा महासाहसी शत्रुओंके मुख रूप कमल मुद्रित करणको चन्द्रमा समान तीनों भाई ऐसे योधा होंगे कि युद्धका नाम सुनकर जिनके हर्षके रोमांच होवें बड़ा भाई कछू इक भयंकर होयगा जिस वस्तु की
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