Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पक
११
ललाट पर शक्ती लगाई सो इन्द्र के रुधिर झरने लगा और माली उछल कर इन्द्रपै आया तब इंद्र ने पुरास || महा क्रोध से सूर्यके विम्ब समान चक्र से माली का सिर काटा माली भूमि में पड़ा तब सुमाली माली
को मुवा जान और इन्द्रको महा बलवान जान सर्व परिवार सहित भागा मालीको भाईका अत्यंत दुःख हुवा जब यह राक्षसबंशी और बानवंशी भागे तब इन्द्र इनके पीछे लगा तब सौम नामा लोकपाल ने जो स्वामी की भक्ति में तत्पर है इन्द्र से बीनती करी कि हे प्रभो जब मुझसा सेवक शत्रुओं के मारणे को समर्थ है तब आप इनपर क्यों गमन करें सो मुझे आज्ञा देवो शत्रुओं को निमूल करू, तब इंद्रने आज्ञा करी, यह आज्ञा प्रमाण इनके पीछे लगा और बाणों के पुंज शत्रुओं पर चलाए कपि
और राक्षसों की सेना बाणों से बेधी गई जैसे मेघकी धारा से गाय के समूह ब्याकुल होवें तैसे इनकी सर्व सेना ब्याकुल भई ॥ : अथानन्तर अपनी सेना को ब्याकुल देख सुमाली का छोटा भाई माल्यवान् बाहुड़ कर सौम पर
आया और सौमकी छाती में भिण्डिपाल नामा हथियार मारा वह मूछित होगया और जबलग वह सावधान होय तब बग राक्षसवंशी और बानवंशी पाताल लङ्का जा पहुंचे मानों नया जन्म भया, सिंह के मुख से निकले, सौमने सावधान होकर सर्व दिशा शत्रुओं से शून्य देखी बहुत प्रसन्न होय इन्द्र के निकट गया और इन्द्र विजय पाय ऐरावत हस्तीपर चढ़ा लोकपालों से मण्डित शिरपर छत्र फिरते चवर
दुरते आगे अप्सरा नृत्य करती बड़े उत्साह से महा विभूति सहित स्थनूपुर में पाए वह स्थनूपुर रत्नमई || वस्रोंकी ध्वजावों से शोभे हैं ठोर ठोर तोरणों से शोभायमान है जहां फेलन के ढेर होय रहे हैं अनेक
For Private and Personal Use Only