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छक्खंडागम
लोकाकाशके संख्यात प्रदेशप्रमाण नहीं है, किन्तु असंख्यात प्रदेशप्रमाण है, वह अंगुलके असंख्यातवें भागसे लेकर घनलोक तक सम्भव है । ६. वेदनाकालविधानमें बतलाया गया है कि वेदनाद्रव्यस्कन्ध अपने वेदनास्वभावके साथ जघन्य और उत्कृष्ट रूपसे इतने काल तक जीवके साथ रहते हैं । ७. वेदनाभावविधान में बतलाया गया है कि वेदनासम्बन्धी भावविकल्प संख्यात, असंख्यात या अनन्त नहीं हैं, किन्तु अनन्तानन्त हैं । ८. वेदनाप्रत्ययविधानमें वेदनाके कारणोंका वर्णन किया गया है । ९. वेदनास्वामित्वविधानमें वेदनाके स्वामियोंका विधान किया गया है । १०. वेदनावेदनविधान में बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्तरूप प्रकृतियोंके भेदसे जो वेदनाके भेद प्राप्त होते हैं, उनका नयोंके आश्रयसे ज्ञान कराया गया है । ११. वेदनागतिविधानमें वेदनाकी स्थित, अस्थित और स्थितास्थित गति का वर्णन किया गया है । १२. वेदना - अन्तरविधान में अनन्तरबन्ध, परम्पराबन्ध और तदुभयबन्धरूप समयप्रबद्धोंका निरूपण किया गया है । १३. वेदनासन्निकर्षविधानमें द्रव्यवेदना, क्षेत्रवेदना, कालवेदना और भाववेदनाके उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य पदोंमेंसे एक एक को विवक्षित कर शेष पदोंका उसके साथ सन्निकर्ष वर्णन किया गया है । १४. वेदनापरिमाणविधान में काल और क्षेत्रके भेदसे मूल और उत्तर प्रकृतियोंके प्रमाणका वर्णन किया गया है । १५. वेदनाभागाभागविधान में प्रकृत्यर्थता, स्थित्यर्थता ( समयप्रार्थता) और क्षेत्रप्रत्याश्रयकी अपेक्षा उत्पन्न हुई प्रकृतियां सब प्रकृतियोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं, यह बतलाया गया है । १६. वेदना - अल्पबहुत्व - अनुयोगद्वार में इन्ही तीन प्रकारकी प्रकृतियों का पारस्परिक अपबहुत्व बतलाया गया है। इस प्रकार सोलह अनुयोगद्वारोंके विषयका यह संक्षिप्त परिचय है । इनमेंसे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव वेदनाओंके स्वामियोंका परिज्ञान अधिक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, अतः उसका कुछ विवेचन किया जाता है ।
वेदना द्रव्यस्वामित्व
गुणितकर्माशिक जीव बतलाया गया है। जिस जीवके क्रमसे बढ़ता जावे, उसे गुणितकर्माशिक कहते हैं । पृथ्वीकायिकों में साधिक दो हजार सागरोपमोंसे हीन प्रमाण काल तक रहा है, उनमें परिभ्रमण करता हुआ थोड़े वार उत्पन्न होता है ( भवावास ) । पर्याप्तोंमें उत्पन्न होता अपर्याप्तों में उत्पन्न होता हुआ अल्प आयुवालोंमें ही जो उत्पन्न आयुवालोंमें उत्पन्न होकरके जो सर्व लघुकालमें पर्याप्तियोंको पूर्ण आयुको बांधता है, तब तब तत्प्रायोग्य जघन्य योगके द्वारा ही बांधता है ( आयु आवास ) । जो उपरिम स्थितियोंके निषेकके उत्कृष्ट पदको और अधस्तन स्थितियोंके निषेक के जघन्य पदको करता
आयुकर्मको छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्मोंकी उत्कृष्ट द्रव्यवेदनाका स्वामी विवक्षित कर्मद्रव्यका संचय उत्तरोत्तर गुणितइसका खुलासा यह है कि जो जीव बादर कर्मस्थिति - ( सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम ) जो पर्याप्तोंमें बहुत बार और अपर्याप्तों में हुआ दीर्घ आयुवालोंमें, तथा होता है ( अद्धावास ) । दीर्घ करता है और जब जब वह
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