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पुढवादिणं समारंभ नायरंति नारभंति णाणुजाणन्ति पायरिया सुहुमावरद्धेवि ण कस्सई मरणसावि पावमायरंतित्ति वा प्रायरिया।""
फिर वहीं पर प्राचार्य के चार भेदों के निरूपण के साथ भावाचार्य को तीर्थकर के समान समझने का निर्देश किया गया है। यथा
"कस्याज्ञा नातिक्रमगीयेत्यधिकृत्य गोयमा ! चउम्विहा पायरिया भवंति, तंजहा - नामायरिया, ठवणायरिया, दव्वायरिया, भावायरिया, तत्थरणं जे ते भावायरिया ते तित्थयरसमा चेव दट्ठव्वा तेसि संतियारणं गाइक्कमेज्जा ।"३
अंगचूलिका में आचार्य के तीन भेद बताने के पश्चात् धर्माचार्यों को उनके गुण कर्मानुसार चार वर्गों में विभाजित किया गया है ।
“तो पायरिया पण्णता। सिप्पायरिया, कलारिया, धम्मायरिया । जे ते धम्मायरिया, परलोगहियठाए निज्जरट्टाए आराहेयव्वा । अण्णे कलायरिया, सिप्पारियाए कइएहि कित्तबुद्धिए पाराहियव्वे ।
तत्थेगे धम्मायरिया सोवायकरंडसमा। बद्धाइकथत्थप्पयगाहाइहिं जे सुद्धसभाए वखारिणति ते सोवागकरंडसमा। वेसाकरंडसमा जो रीरी आहारण. सरिसजीहावक्खागडंबरेणं अंतरं सुप्रसार-विरहियावि सुद्ध सभाए जणं विमोहिति रविति, अप्पारणं युतंसि पालुच्च अणत्थे पाडिति गोयम ! गणहराणं उवमाए ते वेसाकरंडसमा। गाहावईकरंडसमा जे समं समुवसिय-सुगुरुहितो संपत्त अंगोवंगाइ सुत्तत्थेसु परिच्छियच्छेयगंथा स-स. नय-पर-समयरिणच्छया परोवयार करणिक्कभल्लिच्छया। जरणजोग विहीए अणुप्रोगं करिति ते गाहावईकरंडसमा। रायकरंडसमा-जे गरगहरा चउदसपुविवरणो वा घडाओ घडसयं, पहायो पडसयं इच्चाई विहाई सयसमरिगया ते रायकरंडसमा ।
गाहावई करंडसमारणे, रायकरंडसमाणे दो विए आयरिए तित्थयर समाणे।"
दिगम्बर परम्परा के ख्यातनामा विद्वान् प्राचार्य वीरसेन ने षटखण्डागम के पादिमंगल पंचपरमेष्ठि-मंत्र के तीमरे पद की व्याख्या करते हुए 'धवला' में प्राचार्य शब्द की परिभाषा निम्नलिखित रूप में की है :
___"गणमो पायरियाग - पचविधमाचारं चरति चारयतीत्याचार्यः चतुर्दशविद्यास्थानपारगः एकादशांगधर: आचारांगधरो वा तात्कालिकस्वसमयपरममयपारगो वा मेरुरिव निश्चल: क्षितिरिव सहिष्णुः सागर इव बहिः क्षिप्तमल: मप्तभयविप्रमुक्तः-प्राचार्यः ।"..
प्राचार्य शब्द की उपर्यक्त परिभाषा देने के पश्चात् प्राचार्य वीरसेन ने प्राचार्य के स्वरूप और उसके लिये आवश्यक अनुपम गुणों पर विशद प्रकाश डालने वाली निम्नलिखित तीन गाथाएं उद्धत की हैं :' महानिशीथ, प्र० ३ २ महानिशीय, प्र. १ 3 अंग चूलिका
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