Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५१
अर्थ - प्रथमगुणस्थान में सोलहप्रकृतियों की बंधव्युच्छित्ति होती है। तथा सासादन से अप्रमत्तगुणस्थान पर्यंत क्रम से २५, शून्य, १०, ४-६-१ एवं अपूर्वकरण के प्रथमभाग में दो, छठेभाग में तीस और सप्तमभाग में चार, नवमगुणस्थान में पाँच, दशमगुणस्थान में १६ एवं सयोगकेवली के एकप्रकृति की बन्धव्युच्छित्ति होती है।
विशेषार्थ - उत्पादानुच्छेद और अनुत्पादानुच्छेद ये दो बंधव्युच्छित्ति के नय हैं। उत्पादानुच्छेद को द्रव्यार्थिकमय भी कहते है। इस नय की अपेक्षा से तो जहाँ अस्तित्व है वहीं विनाश है, तथा जहाँ अस्तित्व ही नहीं वहाँ बुद्धि में कैसे आसकता है और जब बुद्धि में नहीं आवेगा तो वचन अगोचर होने से अभाव हुआ, एवं अभाव होने से व्यवहार की प्रवृत्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि अभाव नामका कोई पदार्थ नहीं है तथा उसको जाननेवाला कोई सत्यप्रमाण भी नहीं है।
प्रमाण सत्रूप वस्तु को ही जानता है असत्रूप वस्तु में इसका व्यापार ही नहीं होता। यदि असत्रूप में प्रमाण का व्यापार माना जावेगा तो गधे के सींग में भी प्रमाण के विषय की प्रवृत्ति मानी जावेगी, किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि गधे के सींग की अनुपलब्धि है। अतः जहाँ पर अस्तित्व है वहीं पर नास्तित्व है।
अनुत्पादानुच्छेद पर्यायार्थिक नय का विषय है। इस नय के अभिप्रायानुसार जहाँ सत्त्व नहीं वहाँ अभाव है। भाव की उपलब्धि होने पर अभाव का विरोध है, क्योंकि सदभाव के निषेध बिना अभाव हो नहीं सकता तथा ऐसा भी नहीं है कि कर्मों का नाश नहीं है, क्योंकि घातिया व अघातियाकर्म सर्वत्र नहीं पाए जाते । अर्थात् जो सद्भावरूप है उसका अभाव नहीं है, इसीकारण सद्भाव और अभाव का परस्पर में विरोध है। अत: जहाँ नास्तित्व है वहीं नास्तित्व कहना योग्य है। स्याबाद में दोनों नय अविरोधी हैं अत: यहाँ व्युच्छित्ति के कथन में द्रव्यार्थिकनयरूप उत्पादानुच्छेद की अपेक्षा ही कथन किया गया है।
उत्पाद अर्थात् विद्यमान का अनुच्छेद-अविनाशरूप जो है वह उत्पादानुच्छेद-नय है। इस प्रकार द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा अपने-अपने गुणस्थान के चरमसमय में बंधव्युच्छित्ति होती है। पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से तो उस अंतिमसमय के अनन्तर-समय में उन प्रकृतियों के बन्ध का नाश होता है।
व्युच्छित्ति नाम बिछुड़ने का है किन्तु जहाँ पर व्युच्छित्ति कही जाती है, वहीं पर उनका संयोग रहता है। जैसे दो पुरुष एक नगर में रहते थे उसमें से एकपुरुष दूसरे स्थान पर गया, वहाँ किसी ने पूछा कि तुम कहाँ बिछुड़े थे तब उसने कहा कि हम अमुक नगर में बिछुड़े थे। इस प्रकार जहाँ उनका संयोग था वहीं बिछुड़ना कहा, इसी तरह जहाँ-जहाँ पर कर्मों के बंध, उदय अथवा सत्त्व की व्युच्छित्ति बताई