Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १७१
मूलप्रकृतिसम्बन्धी चतुर्विधप्रदेशबन्ध में सादि इत्यादि चार प्रकार के बन्ध सम्बन्धी
सन्दृष्टि -
प्रदेश बन्ध ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय आयु नाम
के प्रकार
उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
अजघन्य
जघन्य
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४
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X
܀
२
४
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ܐ
२
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२
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अथानन्तर ३० प्रकृतियों के नाम गिनाते हैं
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गोत्र
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तीसण्हमणुक्कस्सो, उत्तरपयडीसु चदुविहो बंधो । सेसतिये दुवियप्पो, सेसेचउक्केवि दुवियप्पो ॥ २०८ ॥
णाणंतरायदसयं, दंसणछक्कं च मोहचोद्दसयं । तीसहमणुक्कस्सो, पदेसबंधो चदुवियप्पो ॥ २०९ ॥
२
नोट- उपर्युक्त सन्दृष्टि में जहाँ २ का अङ्क लिखा है उसका अभिप्राय सादि और अध्रुव एवं जहाँ ४ का अङ्क लिखा है वह सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव है ऐसा जानना । अब उत्तरप्रकृतिसम्बन्धी कथन करते हैं।
अन्तराय
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अर्थ - उत्तरप्रकृतियों में ३० प्रकृतियों का अनुत्कृष्टप्रदेशबन्ध सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव के भेद से चारों प्रकार का है, अवशेष उत्कृष्ट, अजघन्य और जघन्यप्रदेशबन्ध सादि व अध्रुव के भेद से दो प्रकार का है तथा शेष ९० प्रकृतियों का उत्कृष्टादि चारों प्रकार का प्रदेशबन्ध सादि अध्रुव के भेद से दो प्रकार का ही है।
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अर्थ - पाँचज्ञानावरण, ५ अन्तराय, निंद्रा, प्रचला, चक्षु अचक्षु अवधि और केवलदर्शनावरण, अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण-सञ्चलनक्रोध मान माया और लोभ, भय, जुगुप्सा इन सर्व ३० प्रकृतियों के अनुत्कृष्टप्रदेशबन्ध सादि इत्यादिरूप से चारप्रकार के हैं। सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव का स्वरूप पहले कहा था वही जानना ।