Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड- ७३१
भव्यपारिणामिकभावके संयोगसहित क्षायोपशमिकभावके तीन इसप्रकार (३+३) ६ भंग गुणकाररूप जानने तथा सर्वसंयोगीभंगों में एक अज्ञान होते हुए अन्य अज्ञान पाए जाते हैं जैसे- कुमतिके होते हुए कुश्रुतादि पाए जाते हैं तथा एकदर्शनके होनेपर अन्यदर्शन पाये जाते हैं जैसे- चक्षुदर्शन होनेपर अन्यदर्शन पाये जाते हैं। एक लब्धि होनेपर अन्य लब्धियाँ पायी जाती हैं, इसप्रकार ये तीन भंग क्षेपरूप जानने,
सर्व मिलकर गुण्य आठ अर्थात् औदयिकके आठ भेद, गुणकार (प्रत्येकभंगमें औदयिक का समूहरूप एक, द्विसंयोगीके ५, त्रिसंयोगीके ६ इसप्रकार ९+५+६) १२, क्षेप ( एकसंयोगीमें क्षायोपशमिकके ३ व पारिणामिक २, द्विसंयोगीमें ६, क्षायोपशमिक के स्वसंयोगीके ३ इसप्रकार ५+६+३) १४ है । यहाँ गुण्यको गुणकार गुणाकरके गुणनफलमें क्षेपरूप भंग मिलानेसे (१२०८ + १४) ११० भंग होते हैं ।
इसीप्रकार सासादन गुणस्थानमें क्षायोपशमिकभावके अज्ञान, दर्शन और लब्धि ये ३, औदयिकके ७ तथा पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक जातिपद है। यहाँ गुण्य तो ७ है एवं प्रत्येकभंगमें गुणकार एक, क्षेप चार; द्विसंयोगीभंगों में गुणकार चार ( औदयिकभावोंका समूहरूप १०३ क्षायोपशमिक = ३ तथा १ औदयिकका व १ पारिणामिक का अतः १०१=१ और ३ इनको जोड़नेपर ३+१ = ४ ), क्षेप ३ ( क्षायोपशमिकके ३४१ पारिणामिकका = ३ ) ; त्रिसंयोगी भंगों में गुणकार ३ ( औदयिकका समूहरूप १ × पारिणामिकका १×क्षायोपशमिक के ३); स्वसंयोगीमें क्षेप उपर्युक्त ३ इसप्रकार गुण्यराशि ७ में गुणकार ८ ( प्रत्येकभंगका १ + द्विसंयोगीके ४ त्रिसंयोगीक ३) क्षेप १० ( प्रत्येकभंग ४+ द्विसंयोगीके ३+स्वसंयोगीके ३) अत: ७४८ + १० = ६६ भंग हैं। मिश्रगुणस्थान में क्षायोपशमिकभावके मिश्रभावरूपज्ञान, दर्शन और लब्धि ये ३; औदयिकके ७ और पारिणामिकका भव्यत्वरूप एकजातिपद है। यहाँ गुण्य तो ७ है, प्रत्येकभंगमें गुणकार एक, क्षेप चार; द्विसंयोगी भंगोंमें गुणकार चार, क्षेप ३; त्रिसंयोगीभंगों में गुणकार ३ स्वसंयोगीभंगमें क्षेत्र ३ | ये सर्व मिलकर गुणकार ८ व क्षेप १० होते हैं अतः गुण्य ७ को गुणकार आठ गुणाकरके क्षेपराशि १० मिलानेसे (७०८+१०) ६६ भंग होते हैं। यहाँ गुणकार व क्षेप को प्राप्त करने का विधान सासादनगुणस्थानवत् ही जानना |
असंयतगुणस्थान में औपशमिकका एकउपशमसम्यक्त्व, क्षायिकका एकसम्यक्त्व क्षायोपशमिकके ज्ञान -दर्शन-लब्धि और वेदकसम्यक्त्वरूप चार, औदयिक्के सात और पारिणामिकका भव्यत्वरूप एकजातिपद है। यहाँ गुण्य सात और प्रत्येकभंगमें गुणकार एक, क्षेप सात; द्विसंयोगी भंगों के गुणकार सात, क्षेप १२; त्रिसंयोगीमें गुणकार १२, क्षेप ६; चतुः संयोगीभंगा में गुणकार ६, पंचसंयोगी भंगोंका अभाव है, क्योंकि क्षायिकसम्यक्त्व और उपशमसम्यक्त्वका संयोग नहीं है। स्वसंयोगी भंगोंमें क्षेत्र ३ ये सर्व मिलकर गुणकार २६ और क्षेप २८ हैं, यहाँ गुण्य ७ में गुणकार २६ से गुणाकरके क्षेत्रराशि २८ जोड़नेसे (७२६ + २८) २९० भंग होते हैं। आगे देशसंयत प्रमत्त व अप्रमत्त इन तीन गुणस्थानों में
पशमिकभावका एक सम्यक्त्व, क्षायिकभावका एक सम्यक्त्व; क्षायोपशमिकके ज्ञान, दर्शन, लब्धि, सम्यक्त्व व चारित्र ये ५; औदयिकके ६ और पारिणामिकका एक भव्यत्व ये जातिपद हैं। यहाँ गुण्य