Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 780
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७४१ व ४ कषायसहित ६ लेश्या अर्थात् ७२ से गुणा करे, देवगतिमें दोलिंग व ४ कषायसहित ६ लेश्या अर्थात् (२४४४६) ४८ से गुणा करे तो भंगोंका प्रमाण प्राप्त होता है सो ये सर्व मिलकर (१२+७२+७२+४८) २०४४१६-३२६४ गुणी पण्णट्ठीप्रमाण है। इसप्रकार गत्यादि सर्वपिण्ड पदों के भङ्ग (१+८+३६+२८८+३२६४) ३५९७ से गुणित पण्णट्ठीप्रमाण हैं तथा इनमें अधस्तनवर्ती प्रत्येकपदोंके भंग (जो कि एककम पण्णहीके आधेप्रमाण कहे थे) उनको मिलानेसे मिथ्यात्वगुणस्थानमें सर्वपदभंग (३५९७+ 3 ) ७१९५/२ अर्थात् पण्णट्टीको ७१९५ के आधेप्रमाणसे गुणाकरके उसमें एककम करनेपर जो लब्ध आवे उतने प्रमाण जानना। इनकी ऊर्ध्व-तिर्यगूरूप रचना कहते हैं- कुमति आदिरूप प्रत्येकपद तो नीचे और उनके ऊपर भव्यत्व-अभव्यत्व तिर्यगरूपसे लिखना। उसके ऊपर चारगति एवं उसके ऊपर यथासम्भव लिंग बराबर-बराबर लिखना तथा उनके ऊपर चारकषाय और उनके ऊपर यथासम्भव लेश्या तिर्यरूपसे लिखना चाहिए। इसप्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान में भंग व उनके लिखनेका विधान जानना। सासादनगुणस्थानमें मिथ्यात्वरूप प्रत्येकपदका तो अभाव है और भव्यत्व-अभव्यत्वरूप जो पिंडपद कहा था उसमें से यहाँ अभव्यत्वका भी अभाव है अतः प्रतिपक्षी के अभावसे भव्यत्वको भी प्रत्येकपद जानना सो यहाँ प्रत्येकपद १५ और पिण्डपद चार हैं। यहाँ पूर्वोक्त प्रकार कुमतिके १, कुश्रुतके २, विभंगके ४, चक्षुदर्शनके ८, अचक्षुदर्शनके १६, दानके ३२, लाभके ६४, भोगके १२८, उपभोगके २५६, वीर्यके ५१२, अज्ञानके १०२४, असंयमके २०४८, असिद्धस्वके ४०९६, जीवत्वके ८१९२ और भव्यत्वके १६,३८४ इस प्रकार दूने-दूने क्रमसे भङ्ग जानना सो भव्यत्वभावके भंगोंका प्रमाण पण्णट्ठीके चतुर्थांश के बराबर है। भव्यत्वके भंगोंको दूना करनेपर अर्थात् पण्णहीके आधेप्रमाण एकगतिसम्बन्धी, इनको चौगुना करनेपर चारोंगति सम्बन्धी भंगोंका प्रमाण प्राप्त होता है जो कि दोगुणी पण्णट्टी के बराबर है। एकगतिसम्बन्धी भंगोंको दूना करनेपर पण्णट्ठीप्रमाण एकलिंगसम्बन्धी भंग हैं उनको (नरकगतिका १, तिर्यञ्चगतिके ३, मनुष्यगतिके ३, देवगतिके २) ९ लिंगोंसे गुणाकरनेपर नौगुणी पण्णट्टीप्रमाण भंग होते हैं। एकलिंगसम्बन्धी भोंसे दूने अर्थात् दोगुणी पण्णट्ठीप्रमाण भंग एककषायसम्बन्धी हैं इनको नरकगतिमें एकवेदसहित चारकषायसे, तिर्यञ्चगतिमें तीनवेदसहित चारकषायसे, मनुष्यगतिमें तीनवेदसहित चारक्रषायसे और देवगतिमें दो वेद सहित चारकषायसे गुणाकरनेपर अर्थात् (४+१२+१२+८) ३६ गुणी दो पण्णीप्रमाण भंग होते हैं । एककषायसम्बन्धी भड़से दूने अर्थात् चौगुणीपण्णट्ठीप्रमाण भंग एकलेश्याके होते हैं इनको नरकगतिमें एकलिंग व चारकषायसहित तीनलेश्या (१४४४३) अर्थात् १२ से, तिर्यञ्चगतिमें तीनलिंग व चारकषायसहित ६ लेश्या (३४४४६) अर्थात् ७२ से, मनुष्यगतिमें भी इन्हीं ७२ से और देवगति दो वेद (लिंग) व चारकषायसहित ६ लेश्या (२४४४६) अर्थात् ४८ से गुणाकरनेपर (१२+७२+७२+४८) चारोंगतिसम्बन्धी सर्वभङ्ग २०४४४-८१६ गुणी

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