Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७८०
पंचमादि गुणहानिमें दूना दूना द्रव्य प्रथम गुणहानि पर्यन्त जानना ।
१०० १२०० | ४०० १८००४१६००१३२०० |
अब नानागुणहानिके द्रव्यको जानकर क्या करना सा कहते हैं
रूऊणद्धाणद्धेणूणेण णिसेगभागहारेण । हदगुणहाणिविभजिदे, सगसगदव्वे विसेसा हु ॥ ९३० ॥
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अर्थ एककम गुणहानिआयाम के प्रमाणको आधाकरके निषेकभागहार मेंसे घटाकर एक गुणहानिआयामको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उसका भाग अपने-अपने द्रव्यमें देने से जो प्रमाण आवे वह (चय) का प्रमाण होता है।
तद्यथा
विशेषार्थ - असन्दृष्टि में गुणहानिआयामके प्रमाण ८में से एककम किया तो (८-१) ७ रहे इसके आधे २२ को निषेकभागहार १६ में से घटानेपर (१६-३३) १२ ई रहे उसको गुणहानि आयामकी संख्या ८ से गुणाकरे तो (१२ ÷ ४८) १०० लब्ध आया सो इससे प्रथमगुणहानिके द्रव्य ३२०० में भाग देनेसे (३२००÷१००) ३२ आया सो यह प्रथमगुणहानिका चय जानना । इसीप्रकार द्वितीयगुणहानिका द्रव्य १६०० है । इसमें १०० का भाग देनेपर (१६००÷१००) १६ आये । यह द्वितीयगुणहानिका चय जानना । इसीप्रकार तृतीयादिगुणहानिके सर्वद्रव्यमें भाग देनेपर क्रमसे ८-४-२ और १ लब्ध आता है जो कि तृतीयादिगुणहानिके चयोंका प्रमाण है।
अथानन्तर प्रथमनिषेक को प्राप्त करनेका विधान कहते हैं
पचयस्स य संकलणं, सगसगगुणहाणिदव्वमज्झम्हि | अवर्णिय गुणहाणिहिदे, आदिपमाणं तु सव्वत्थ ।। ९३१ ।।
अर्थ सर्व चयधनको अपने-अपने गुणहानिके सर्वद्रव्यमेंसे कमकरके जो प्रमाण हो उसमें गुणहानि आयामका भाग देनेसे जो संख्या आवे वह आदि निषेकका प्रमाण सर्वत्र होता है। उसमें एकएक चय बढ़ाने पर द्वितीयादि निपेकों का प्रमाण होता है।
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विशेषार्थ - अङ्कसन्दृष्टिसे प्रथमगुणहानिमें "व्येकपदार्धघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनं" इस करणसूत्रसे एककम गच्छ (८-१) ७ का आधा ३ को चयके प्रमाण ३२ से गुणा करनेपर ११२ हुए । पुन: इसको गच्छ (८) से गुणा करने से १९२४८=८९६ होते हैं, यह प्रथमगुणहानिका प्रचयधन जानना । इसको सर्वद्रव्य ३२०० में से घटानेपर ३२०० ८९६ = २३०४ रहे। इसमें गुणहानि आयाम ८का भाग देनेसे २३०४÷८ = २८८ हुए। यह आदि निषेकका प्रमाण है। इसमें एक-एक चय (३२) बढ़ाने से