Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 831
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७९२ असंख्यातलोकप्रमाण हैं। उनसे पल्यके असंख्यातवेंभागगुणे नाम व गोत्रकर्मके इनसे पल्यके असंख्यातāभागगुणे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय इन चारकर्मोके तथा इनसे पल्यके असंख्यातवेंभागगुणे, किन्तु सबसे अधिक मोहनीयकर्मके स्थितिबंधाध्यवसायस्थान हैं। इसप्रकार प्रकृतियोंके भेदोंकी अपेक्षा तीनों जगह क्रमसे असंख्यातगुणे स्थितिबंधाध्यवसायस्थान जानने चाहिए ।।९४७-४८॥ यहाँ प्रसंगप्राप्त सिद्धान्तवचन कहते हैं णय सव्वमूलपयडीणं समाणाणं कसायोदयहाणाणमेत्थगहणं कषायोदयट्ठाणेण विणा मूलपयडि बंधाभावेण सव्वपयडिदिदि बंधज्झवसाणट्ठाणाणं समाणप्पसंगादो तम्हा सव्वमूलपयडीणं सगसगउदयादो समुप्पण्णपरिणामाणं सगसगविदिबंधकारणत्तेण ठिदिबंधज्झवसाणट्ठाण सण्णिादाणमुत्तरपच्चयाणमेत्थगहणं । पयडिसमाहारमासेज णाणावरणादीणं पयडीणं सगसगढिदिबंधकारणज्झवसाणट्ठाणाणि सव्वाणि एगत्त कादूण पमाणं परूविंद । गा हिदि पडि एसा परूवगा होदि उवरिम सुत्तोहे ट्रिदिपडि अज्झवसाणपमाणस्स परूविज्जमाणत्तादो हेडिमे हिंतो उवरिमाणि किमट्ठमसंखेजगुणाणि साहावियादो मिच्छत्तासंजमकषायपचयेहि सवाणि कम्माणि सरसाणि तेण एदेसि कम्माणमज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेजगुणहाणित्ति ण घडदे हेहिमाणं ठिदि बंधट्ठाणेहिंतो उवरिमाणं कम्माणं ठिदिबंधट्ठाणाणि अहियाणिति असंखेजगुणत्तं ण जुज्जदे हेट्टिमहे ट्ठिमकम्माणं ठिदिबंधट्ठाणपाओग्ग कसायेहिंतो उवरिमउवरिमाणं कम्माणमहियट्टिदिबंधवाणपाउग्गकसायउदयट्ठाणाणं असमाणाणमणुवलंभेण असंखेजगुणत्ताणुववत्तीदो। ण एस दोसो हेदिठमाणं उदयट्ठाणे हिंतो उरिमाणं कम्माणं उदयट्ठाणेण बहुत्तेण असंखेजगुणत्तविरोहादो। अर्थात् सभी मूलप्रकृतियोंके समान नहीं पाए जानेवाले कषायोदयस्थानोंका यहाँ ग्रहण है, क्योंकि कषायोदयस्थान बिना मलप्रकृतियों के बन्धका अभाव होनेसे सभी प्रकृतियों के स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान समान हो जावेंगे इसलिए सर्वमूलप्रकृतियोंके अपने-अपने उदयसे उत्पन्न आत्माके परिणाम अपने-अपने स्थितिबन्धके कारण होनेसे जिनका स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान नाम है ऐसे उत्तरप्रत्यय यानी आस्रवके भेदोंका यहाँ ग्रहण है। प्रकृतिसमुदायका आश्रय करके ज्ञानावरणादि प्रकृतियोंके अपनी-अपनी स्थिति के कारणभूत सभी अध्यवसायस्थानोंको इकट्ठे करके प्रमाणकी प्ररूपणाकी गई है स्थिति की अपेक्षा ऐसी प्ररूपणा नहीं है, क्योंकि आगेके सूत्रोंसे स्थितिकी अपेक्षा अध्यवसायके प्रमाणका निरूपण किया गया है। १. यह कथन ध.पु. ५१ पृ. ३१० पर भी है।

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