Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८०० ९में से घटानेपर ७६ शेष रहे इसको अनुकृष्टिगच्छ चार का भाग देने पर प्रथमखण्डका प्रमाण अष्टमांश कम दो (१५) होता है। इसमें चतुर्थांशप्रमाण अनुकृष्टिका एक-एकचय मिलानेपर द्वितीयादिखण्ड होते हैं ( १ .२१ ) इन चारों खण्डों का जोड़ करनेपर (५२) होता है। इसीप्रकार अन्तिमनिषेकके द्रव्य १६ में से चयधन १३ घटानेसे (१६-५६) १४ को अनुकृष्टिगच्छ ४ का भाग देनेपर अष्टमांशअधिक ३६ लब्ध आया सा यह तो प्रथमखण्ड और इसमें चतुर्थांशमात्र एक-एकचय अधिक होनेसे द्वितीयादिखण्ड होते हैं तथा चारों खण्डोंका जोड़ १६ हुआ।
___ यहाँ आधा चौथाई कहनेका अभिप्राय यह है कि अङ्कसन्दृष्टि द्वारा समझमें आ जावे, किन्तु महत्प्रमाणरूप अर्थसन्दृष्टिमें अध्यवसायों में आधा-चौथाई नहीं है। अथवा अपनी इच्छानुसार अंकसन्दृष्टि करना हो तो त्रिकरणचूलिका अधिकारमें अधःप्रवृत्तकरणरचनामें जो अङ्कसन्दृष्टिद्वारा कथन किया है वैसा करना । यहाँ प्रथमगुणहानिमें अध्यवसाय ३०७२, गुणहानिआयाम १६, जघन्यस्थितिसम्बन्धी प्रथमनिषेक १६२, प्रत्येकनिषेकमें चयका प्रमाण ४ है। यह सभषेक १२ धन ६ पटानेपर (१६२-६) १५६ हुआ। इसमें अनुकृष्टिगच्छ ४ का भाग देनेपर ३९ आया। यह प्रथमखण्ड तथा द्वितीयादि खण्डमें अनुकृष्टिचयका प्रमाण एक सो एकचय अधिक जानना । इसप्रकार चारोंखण्डोंका जोड़ करनेपर १६२ होते हैं। इसीप्रकार द्वितीयादि निषेकोंकी रचनाकर अन्तिमनिषेकमें द्रव्य २२२ है। इसमेंसे चयधन ६ घटाने पर (२२२-६) २५६ रहे। इसमें अनुकृष्टिगच्छ ४ का भाग देनेपर ५४ लब्ध आया सो यह प्रथमखण्ड जानना तथा द्वितीयादिखण्डोंमें एक-एकचय अधिक जानना। इसप्रकार चारोंखण्डोंका जोड़करनेसे २२२ होता है। इसीप्रकार अङ्कसन्दृष्टिद्वारा पूर्वोक्त अर्थ जानना। अत्यन्तपरोक्ष अर्धको जाननेका यह भी उपाय है तथा ऐसे ही द्वितीयादि गुणहानिमें भी अनुकृष्टिका विधान करना। प्रथमगुणहानिके अनुकृष्टिचय, द्रव्य और खण्डोंसे द्वितीयादि गुणहानिमें अनुकृष्टिचयादिका प्रमाण दूना-दूना जानना।
अङ्कसन्दृष्टि की अपेक्षा स्थितिबंधाध्यवसाय की रचनाजघन्यादि स्थिति
| द्वितीयखंड | तृतीयखंड | चतुर्थखण्ड बंधकी ऊर्ध्वरचना
प्रथमखड
२२२ २१८
२१०
२०२