Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ८०५
जेण विणिम्मियपडिमावयणं सव्ववसिद्धिदेवेहिं । सब्वपरमोहिजोगिहिं, दिहं सो गोम्मटो जयदु ।। ९६९ ।। वज्जयणं जिणभवणं, ईसिपब्भारं सुवण्णकलसं तु । तिहुवणपडिमाणिक्कं, जेण कदं जयदु सो राओ ।। ९७० ।।
जेणुब्भियथंभुवरिमजक्खतिरीटग्गकिरणजलधोया । सिद्धाण सुद्धपाया, सो राओ गोम्मटो जयदु ॥ ९७९ ॥ गोम्मटसुत्तल्लिहणे, गोम्मटरायेण जा कदा देसी ।
सो राओ चिरकालं, णामेण य वीरमत्तंडी ॥ ९७२ ॥
अर्थ - जिस प्रतिमाको चामुण्डरायने बनवाया उस प्रतिमाके मुखको सर्वार्थसिद्धिके देवोंने तथा सर्वावधि व परमावधिज्ञानधारी मुनियोंने देखा है वह चामुण्डराय सर्वोत्कृष्टपनेको प्राप्त होवे ॥ ९६९ ॥
जिस मन्दिरका अवनितल अर्थात् पीठबन्ध वज्र सदृश है, जिसका ईषत्प्राग्भार नाम है, जिसके ऊपर स्वर्णमयी कलश है तथा जो अनुपम है ऐसे जिनमन्दिरको बनवानेवाला चामुण्डराय जयवन्त प्रवर्ती ॥ ९७० ॥
जिसने चैत्यालयके खम्भोंपर यक्षके आकारवालीमूर्तिके मुकुटाग्रभागकी किरणोंरूप जलसे सिद्धपरमेष्ठी के आत्मप्रदेशोंके आकार रूप शुद्धचरण धोए हैं ऐसा चामुण्डराय जयशील होवे। (यद्यपि सिद्धिस्थानपर्यन्त यक्षके मुकुट किरण कैसे प्राप्त हो सकते हैं, किन्तु उपमालङ्कारके द्वारा कहनेमें दोष नहीं है | यहाँ इतना अर्थ जानना कि चैत्यालयमें स्तम्भ बहुत ऊँचा बना है, उसके ऊपर यक्षकी मूर्ति है, उसके मुकुटमें प्रकाशवन्त रत्न लगे हैं । ) । । ९७१ ।।
गोम्मटसार ग्रन्थके गाथासूत्र लिखते समय जिस गोम्मटरायने कर्णाटकवृत्ति बनाई है वह 'वीरमार्तण्ड' नामसे प्रसिद्ध चामुण्डराय दीर्घकालपर्यन्त जयवंत वर्तो ।।
॥ इति प्रशस्तिः ॥
इस प्रकार नेमिचन्द्राचार्य विरचित गोम्मटसारकर्मकाण्डग्रन्थकी 'सिद्धान्तज्ञानदीपिका' नामक हिन्दी टीकामें 'कर्मरचनासद्भाव' नामक नवमअध्याय पूर्ण हुआ।
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