Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 869
________________ पारिभाषिक शब्द फालि गली सुधार एकसमयमें संक्रमित होनेवाले प्रदेशपुंजको फालि कहते हैं। (गाथा ४१२ टीका) भक्तप्रत्याख्यान भावकर्म भुजकारबन्ध मिथ्यात्वप्रकृति व्युच्छित्ति विध्यातसंक्रमण - भागहार विसंयोजना विशुद्धपरिणाम वेदनीय कर्म गोम्मटसार कर्मकाण्ड- ८३० स्त्यानगृद्धि लक्षण भोजनत्यागकी प्रतिज्ञा करके जो संन्यासमरण होता है उसके कालका प्रमाण जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट १२ वर्ष है । ( गाथा ६० ) द्रव्यकर्म की फलदेने की शक्ति भावकर्म है। ( गाथा ६ ) अल्पप्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला पश्चात् अधिक प्रकृतियोंका बंध करने लगे वह भुजकार बंध है। ( गाथा ४६९-५६३ ) जिसके उदयसे जीव सर्वज्ञप्रणीत मार्गले पराङ्मुख, तत्त्वार्थश्रद्धानमें निरुत्सुक, आत्मिक हिताहितके विचारसे रहित होता है, वह मिथ्यात्व प्रकृति है । ( गाथा ३३ टीका) आगे गुणस्थानोंमें उदय सत्त्व अथवा बन्ध का अभाव हो जाना व्युच्छित्ति है । (गाथा ४०१ टीका) वेदकसम्यक्त्वकालके भीतर दर्शनमोहनीयकी क्षपणसम्बन्धी अधः प्रवृत्तकरणके अन्तिमसमयतक सर्वत्र ही मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका विध्यातसंक्रमण होता है। इसका भागहार भी अंगुलके असंख्यातवें भाग है, किन्तु उद्वेलनभागहार से असंख्यातगुणा हीन है (ज.ध.पु. ९ पृ. १७९) । ( गाथा ४०९ टीका) अनन्तानुबन्धीकी चारोंकषायोंकी युगपत् विसंयोजना करता है अर्थात् अप्रत्त्याख्यानादि १२ कषाय और ९ नोकषायमें से ५ कषायरूप परिणमा देना | (गाथा ३३६ टीका) मंदकषायरूप विशुद्धपरिणाम ( गाथा १६३ टीका ) सुख दुःखका अनुभव करावे वह वेदनीयकर्म है। जो वेदन अनुभवन किया जावे वह वेदनीयकर्म है (ध.पु. ६ पृ. १० ) ( गाथा १४ ) उठाये जानेपर भी सोता रहता है। उस नींदमें ही अनेक कार्य करता है तथा कुछ बोलता भी है किन्तु सावधानी नहीं रहती वह स्त्यानगृद्धि निद्रा है। ( गाथा २२ )

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