Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८२९
पारिभाषिक शब्द
लक्षण
निद्रानिद्रा
निद्रा
निवृत्तिगुणस्थान
निरन्तरबन्धी प्रकृति
परिवर्तमान मध्यम परिणाम
अनेकप्रकारसे सावधान किया हुआ भी आँखें नहीं खोल सकता। (गाथा २२) निद्रा कर्मोदयसे गमन करता हुआ खड़ा हो जाता है, बैठ जाता है, गिर जाता है इत्यादि क्रियाएँ होती हैं। (गाथा २४) एक ही समय में स्थित नानाजीवोंके भिन्न-भिन्न परिणाम हों वह निवृत्ति (अनिवृत्ति) गुणस्थान है। (गाथा १००) जिसका बन्धकाल जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त मात्र है वह निरन्तरबन्धीप्रकृति है। (धवल पु. ८ पृ. १००) जघन्यसे भी अन्तर्मुहूर्ततक बँधती रहे अर्थात् अन्तर्मुहूर्तके मध्यमें.बन्ध होकर जिसप्रकृतिमें अन्तर नहीं पड़ता, वह निरन्तरबन्धप्रकृति है। (कर्मप्रकृति पृ.१४-१५) (गाथा ३९९ टीका) जो परिणाम एक अवस्थासे दूसरी अवस्थाको प्राप्त होकर पुनःपूर्वावस्थाको प्राप्त हो सकें वे परिवर्तमानपरिणाम हैं । (गाथा १७७) कर्मके उपशम-क्षय-क्षयोपशम और उदयकी अपेक्षा बिना जीव क! जो भाव वह पारिणाभिकभाव है। (गाथा ८१५) शोल या स्वभाव । (गाथा २) जिसके उदय से मुख से लार बहती है और हाथ आदि अङ्ग चलते हैं, किन्तु सावधान नहीं रहता वह प्रचला-प्रचला निद्रा है। (गाथा २४) जिसके उदय में यह जीव आँखों को कुछ- कुछ उघाड़कर साता है
और सोता हुआ भी थोड़ा-थोड़ा जानता है, बार-बार मन्दशयन करता है वह प्रचलानिद्रा है। (गाथा २५) प्रत्यय शब्द के अनेक अर्थ हैं-ज्ञान, शपथ, हेतु । यहाँ पर हेतु अर्थ विवक्षित है। (गाथा ७८६) संन्यासभरणक समय अपने शरीर की संवा दूसरोंसे न करावे और स्वयं भी न करे। (गाथा ६१)
पारिणामिकभाव
प्रकृति
प्रचलाप्रचला
प्रचला
प्रत्यय
प्रायोपगमनमरण