Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 867
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८२८ पारिभाषिक शब्द लक्षण चारित्रमोहनीय चूलिका जातिनामकर्म जातिपदभङ्ग आचरण करना अथवा जिसके द्वारा आचरण किया जावे अथवा आचरणमात्र को चारित्र कहते हैं। इस चारित्रको जो मोहे या जिसके द्वार। यह चारित्र मोहा जावे वह चारित्रमोहनीय है। (गाथा ३३) जिसमें कथित या अकथित अथवा विशेषतापूर्वक नहीं कहे हुए अर्थका चिन्तन किया जाता है वह चूलिका है। सूत्रद्वारा सूचित अर्थका विशेष वर्णन करना चूलिका है। जिससे अर्थ प्ररूपणा किये जानेपर पूर्वमें वर्णित पदार्थक विषयमें शियोको निश्चय उत्पन्न हो वह चूलिका है। (धवल पु. ११ पृ. १४०)। सूत्रमें सूचित अर्थको प्रकाशित करना चूलिका है। (धवल पु. १० पृ. ३९५) अनुयोगद्वारोंसे सूचित अर्धांकी विशेष प्ररूपणाकरना चूलिका है (धवल पु. ७ पृ. ५७५)। किसी पदार्थके विशेष व्याख्यानको कथित विषयमें जो अनुक्त विषय है उको मा उक्त अनुक्त विपक्से मिले हुए कथनको चूलिका कहते हैं। (बृ. द्र. सं. टीका पृ. ६८) (गाथा ३९८) अव्यभिचारी सादृश्यभावरूपसे जीव इकट्ठे किये जावें वह जाति नामकर्म है। (गाथा ३३) जहाँपर एक जातिका ग्रहण किया जावे वह जाति पद है जैसे क्षायोपशभिकज्ञान के चार भेद होनेपर भी एक ज्ञानजाति का ही ग्रहण होता है। (गाथा ८४४) जीवोंके ४१ भेदोंको 'जीवपद' कहते हैं। (गाथा ५१९-२०) पुद्गलपिंडको द्रव्यकर्म कहते हैं। (गाथा ६) जिस बन्ध का अभाव नहीं होगा वह ध्रुबबन्ध है। (गाथा ९०, १२३ टीका) जिसशास्त्रमें एक अङ्गके अधिकारका वर्णन विस्तार या संक्षेपरूपसे हो। (गाथा ६१) जो तत्काल नवीन बन्ध हुआ है उसका नाम नवकबन्ध है। (गाथा ३४३ टीका) जो नारकी आदि जीवके गति आदि भेदोंको और औदारिकशरीर आदि पुद्गल के भेदों को अनेकप्रकार करता है वह नामकर्म है। (गाथा १२ टीका) जीवपद द्रव्यकर्म ध्रुवबन्ध धर्मकथा (वस्तु) नवकबन्ध नामकर्म

Loading...

Page Navigation
1 ... 865 866 867 868 869 870 871