Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 870
________________ पारिभाषिक शब्द स्तव स्तुति स्थान-स्थान स्वस्थानसत्त्व संक्लेशपरिणाम सम्यक्त्वप्रकृति सम्यग्मिध्यात्वप्रकृति संक्रमण समयप्रबद्ध कार्मणवर्गणा कार्मणशरीर गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ८३१ लक्षण जिस शास्त्र में सकल अंग का वर्णन विस्तार या संक्षेप से हो। (गाथा ८८) जिस शास्त्र में एक अका वर्णन विस्तार या संक्षेपसे हो । ( गाथा ८८ ) जिसमें कर्मप्रकृतियाँ रहती हैं अर्थात् प्रकृतियोंके समुदायको स्थान कहते हैं वे प्रकृति स्थान, बन्धस्थान, उदयस्थान, सत्त्वस्थानके भेदसे तीनप्रकार के होते हैं (ज, ध.पु. २ पृ. १९९ ) | ( गाथा ४५१ टीका ) विवक्षितपर्यायमें उत्पन्न होनेके बाद उद्वेलन होकर अथवा उद्वेलन हुए बिना नवीनबन्ध होकर जो सत्त्व होता है वह स्वस्थान सत्त्व है। (गाथा ३५१ टीका) तीव्रकषायरूप संक्लेशपरिणाम हैं। ( गाथा १६३ टीका ) जो आत्माके श्रद्धानको नहीं रोकती, किन्तु सम्यग्दर्शनकी निर्मलता व स्थिरताका घात करती है (ज.ध.पु.५ पृ. १३० ) | ( गाथा ३३ टीका ) जिस द्रव्यकर्ममें मिथ्यात्वकी तीव्र अनुभागशक्ति कुछ क्षीण हो जावे और कुछ मंद रह जावे वह सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति है । (गाथा ३३ टीका) जैसा आगममें बतलाया है तदनुसार एकप्रकृतिके स्थितिगत परमाणुओंका अन्य सजातीय प्रकृतिरूप परिणमना संक्रमण है। (ज.ध.पु. ७ पृ. २३८) बन्ध होनेपर संक्रमण सम्भव है, बन्धके अभाव में वह संभव नहीं । (ध.पू. १६ पृ. ३४० ) ( गाधा ४०९ टिप्पण, ४१० टीका) समयप्रबद्ध अथवा कार्मण वर्गणा अथवा कार्मणशरीर पाँचप्रकार रस, पाँच प्रकार वर्ण, दो प्रकार गन्ध तथा स्पर्शके आठ भेदोंमें से चार (स्निग्धरूक्ष, शीत-उष्ण, कर्कश मृदु, गुरु-लघु इन चार युगलोंमें से एक-एक इस प्रकार चार) इन गुणों से परिणत होता है तथा सिद्धराशिके अनन्तवें भाग और अभव्योंसे अनन्तगुणे पुद्गल परमाणुओंका समूहरूप है | ( गाथा १९१ )

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