Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 842
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८०३ आगे अनुभाग बंधाध्यवसायस्थानोंको कहते हुए उसमें जघन्यस्थितिके अध्यवसायस्थानोंमें सबसे जघन्यस्थितिसम्बन्धी अनुभागाध्यवसायस्थानोंको कहते हैं-- रसबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखलोगमेत्ताणि । अवरविदिस्स अवरट्ठिदिपरिणामम्हि थोवाणि ।।९६३॥ अर्थ-अनुभागमायसायस्थल अरोड़ मंत्र्याचा कोला) असंख्यात लोकप्रमाण हैं। इसमें जघन्यस्थितिसम्बन्धी स्थितिबंधाध्यवमायस्थानों में जवन्यस्थितिबन्धयोग्य अध्यवसायोंके प्रमाणसे असं घ्यातलोक गुणे अनुभागबंधाध्यवसायस्थान तत्सम्बन्धी हैं तथापि अन्य स्थितिबंधाध्यवसायसंबंधी अनुभागाध्यवसाय परिणामोंको अपेक्षा स्तोक हैं। विशेषार्थ-जघन्यस्थितिसम्बन्धी स्थितिबंधाध्यवसायस्थानोंके प्रमाणस असंख्यातलोकगुणे तस्थितिसम्बन्धी अनुभागबन्धाध्यवसायों का प्रमाण है सो ही यहाँ द्रव्यका प्रमाण जानना । जघन्यस्थितिसम्बन्धी स्थितिबंधाध्यवसायस्थानोंका प्रमाण सो यहाँ स्थितिका प्रमाण जानना । आवलीको दोनार असंख्यातका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे सो नानागुणहानिशलाका प्रमाण है। उपर्युक्त स्थितिके प्रमाणको नानागुणहानिका भाग देनसे जो प्रमाण आवे सो गुणहानिआयामका प्रमाण है। गुणहानिआयामके प्रमाण को दोगुणा करने पर दो गुणहानिका प्रमाण है। आवलीके असंख्यातवाँभाग सां अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण जानन]। यहाँ द्रव्यके प्रमाणमें एककम अन्योन्याभ्यस्तराशिका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना प्रथमगुणहानिमें द्रव्यका प्रमाण है और आगे इससे दूना-दूना द्वितीयादि गुणहानियाम द्रव्य जानना। प्रथमगुणहानिके द्रव्यको गुण-हानिआयामका भाग देनेपर मध्यमधनका प्रमाण प्राप्त होता है। एककम गुणहानिआयामके आधेले हीन दो गुणहानिआयामका भाग मध्यमधनमें देनेसे चयका प्रमाण प्राप्त होता है और चयको एकअधिक गुणहानिआयामका गुणा करनेसे प्रथमनिषेकका प्रमाण होता है। तत्तो कमेण वहदि, पडिभागेण य असंखलोगेण । अवरविदिस्स जेट्टट्ठिदिपरिणामोत्ति णियमेण ।।९६४ ।। अर्थ- इसके पश्चात् क्रमसे जघन्यस्थितिके जघन्यपरिणामसम्बन्धी प्रथम निषेकरूप अनुभागाध्यवसायस्थानसे उत्कृष्टस्थितिके उत्कृष्ट अनुभागाध्यवसायस्थानपर्यंत असंख्यातलोकरूप प्रतिभागहारसे (असंख्यातवेंभागसे) बढ़ते-बढ़ते अनुभागाध्यवसायस्थान नियमसे जानने चाहिए। विशेषार्थ-उसके पश्चात् जघन्यस्थितिके जघन्यपरिणामसम्बन्धी प्रथमनिषेकरूप अनुभागाध्यवसायस्थान प्रथमगुणहानिके अन्तिमनिषेकरूप अन्तिमअनुभागाध्यवसायपरिणामपर्यन्त असंख्यातलोकमात्रका भाग सर्वद्रव्यमें देनेपर जो घयका प्रमाण आया उससे एक-एकचयनमाण निरन्तर बढ़ते-बढ़ते जानने। इससे आगे गुणहानि-गुणहानिप्रति चयका प्रमाण दूना-दूना जानना । इसप्रकार

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