Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 837
________________ प्रथमादि स्थितिबन्धस्थानों में स्थितिबन्धाध्यवसाय परिणामों की अनुकृष्टि रचना षष्ठ निर्वर्गकाण्ड समाप्त परिणामों का सर्वधन स्पष्टीकरण प्रत्येक स्थितिबन्धस्थान के लिए असंख्यात लोकप्रमाण स्थितिबंधाध्यवसाय परिणाम हैं। उनमें से कुछ परिणाम तो अनन्तरपूर्वस्थितिबंधाध्यवसाय में लिये जाते हैं और कुछ नवीन परिणाम होते हैं. क्योंकि प्रत्येकस्थितिबन्ध के स्थितिबंधाध्यवसाय की अनुकृष्टि रचना होती है। १ से २४ तक स्थितिबन्ध स्थान हैं। 2. ॐ 2214 44 6 4 44 6+++ ॐ ॐ ॐ 2 तर परिणामों का धन परिणाओं का सर्व परिणामों का एवंधर निर्वणाकाण्डकाप परिणामों का सर्वधन परिणामों का सबंधन परिणामों का सबंधन 12 प्रथम निर्वर्मणाकाण्डक्रसमाप्त परिणामों का सबंधन परिणामों का मन परिणामों का सर्वधन 42. (२१८) पण का ॐ परिणायों का सन तृतीय निर्वाकाण्डकसमाप्त परिणा खुद पड़ रख परिणामों का सर्वधन चतुर्थ निर्वर्पणा परिणामों का सर्जधर १५ परिणामों का धन पंचम निर्णणा काण्डकगमाप्न परिणामों का साधन परिणामों का बंधन करामात अंकसंदृष्टि में स्थितिबन्धस्थान २४ हैं, स्थितिबन्धाध्यवसायपरिणाम १२४८ है, जघन्यस्थितिबंध के कारण १६२ परिणाम हैं. जिनकी अनुकृष्टि रचना ३९-४०-४१-४२ है। द्वितीयस्थितिबंधके कारण १६६ परिणाम हैं। इनमें जघन्वस्थितिबंध के कारण स्थिति अध्यवसाय परिणामों में से प्रथम ३९ परिणाम तो द्वितीय स्थितिबंध के कारण नहीं हैं, शेष ४०-४१ व ४२ परिणाम द्वितीय स्थिति-बंध के कारण हैं और ४३ नवीन परिणाम कारण हैं। इस प्रकार ४० ४१.४२४३ = १६६ परिणाम कारण हैं। इसी प्रकार आगे-आगे भी जानना चाहिए। गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७९८ **

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