Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 833
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७९४ भाग दिया जाता है और 'तू' शब्दसे (अथवा प्रथमनिपेकमें) एक अधिक गुणहानिका भाग देनेपर चयका प्रमाण आता है तथा प्रत्येकगुणहानिमें चय का प्रमाण दुगुना-दुगुना जानना । विशेषार्थ - अङ्कसन्दृष्टि से अन्तगुणहानिमें अन्तिम अध्यवसायस्थानोंका प्रमाण ५६ इसमें दोगुणहानिके प्रमाण १६ का भाग देनेपर एक आया अथवा प्रथमअध्यवसाय-स्थानों के प्रमाण ९ में एकअधिक गुणहानिप्रमाण ९ का भाग देनेपर भी एक आया सो यह उस गुणहानिमें चयका प्रमाण जानना। उससे प्रत्येक गुणहानि में चय का प्रमाण दुगुना-दुगुना होता है क्योंकि प्रत्येक गुणहानि में आदि निषेक और अन्तिम निषेक का प्रमाण दूना-दूना होता है। ठिदिगुणहाणिपमाणं, अज्ावसाणम्मि होदि गुणहाणी। णाणागुणहाणिसला, असंखभागो ठिदिस्स हवे ॥९५१॥ अर्थ - पहले बन्धका कथन करते समय कर्मस्थितिकी रचनामें गुणहानिका जैसा प्रमाण कहा है वैसा ही यहाँ अध्यवसायस्थानोंमें भी गुणहानिका प्रमाण जानना तथा नानागुणहानियोंका जो प्रमाण पूर्वमें बन्धकथनमें कहा है उसके असंख्यातवेंभाग-प्रमाण यहाँ अध्यवसायस्थानोंमें नानागुणहानिका प्रमाण होता है। विशेषार्थ - जिसप्रकार पहले गाथा ९१४ से ९२१ में कहा था कि स्थितिके प्रमाणको नानागुणहानिशलाका प्रमाणका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वह गुणहानिका प्रमाण है सो उसीप्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। यहाँ जघन्यस्थितिसे लेकर उत्कृष्टस्थितिपर्यन्त जितने स्थितिभेद हैं वही स्थितिअध्यवसायस्थानों के भेदोंका प्रमाण जानना इसमें नानागुणहानिशलाकाके प्रमाणका भाग देनेपर जो प्रमाण आचे वह एकगुणहानिआयामका प्रमाण जानना और इसको दुगुना करनेपर दो गुणहानिका प्रमाण होता है तथा नानागुणहानिका प्रमाण स्थितिरचनामें जो नानागुणहानिशलाकाका प्रमाण कहा था उसके असंख्यातवेंभाग जानना । विवक्षित मोहनीयक्रमकी स्थितिरचनामें नानागुणहानिशलाकाका प्रमाण पल्यके अर्धच्छेदोंमेंसे पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेद क्रमकरके जो संख्या आवे उतने कहे हैं। (गाथा ९२५-२६ देखो) इसप्रकार इसप्रमाणमें असंख्यात का भागदेनेपर जो प्रमाण आवे वह यहाँ स्थिति बंधाध्यवसायरचनामें नानागुणहानिका प्रमाण जानना। सर्वस्थितिबंधाध्यवसायस्थान ६३०० को 'रूऊणण्णोण्णभत्थयहिदव्य' एक घाटि अन्योन्याभ्यस्तराशि ६३ का भाग देनेसे १०० लब्ध आया सो प्रथमगुणहानिका द्रव्य जानना । इसे गच्छका भाग देनेसे ४थे ५वें मिले हुए निषेकोंका आधाप्रमाण १२३ मध्यधन जानना। इसमें एककम गच्छ ७ का आधा ३३ सो दो गुणहानि १६में से घटाने पर (१६-३६) १२३शेष रहे। उसका भाग देने पर एक लब्ध आया सो चयका प्रमाण जानना । इसको एकअधिक गुणहानिके प्रमाण ९से गुणा करनेपर लब्ध ९ आया सो प्रथमनिषेक जानना। द्वितीयादि

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