Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७९०
गुणित समयबद्धप्रमाण सत्त्वमें कैसे रहता है सो इस गाथामें बताया गया है उसे साथमें संलग्न त्रिकोणयन्त्रसे जानना चाहिए।
आगे इस सत्तारूप त्रिकोण के जोड़ने की विधि बताते हैं
raftमगुणहाणीणं, धणमंतिमहीणपढमदलमेत्तं । पढमे समयपबद्धं, ऊणकमेणट्टिया तिरिया ।। ९४४ ।।
अर्थ - त्रिकोणरचनायें विवक्षित वर्तमान प्रथम गानिक यमनिक में तिर्फ लिखे निषेकोंका समुदाय समयप्रबद्धप्रमाण होता है और उसके ऊपर द्वितीयनिषेकसे अन्तिमगुणहानि के अन्तिमनिषेकपर्यन्त क्रमसे चयप्रमाणकम होती हुई तिर्यग्रचनारूप द्वितीयादि गुणहानियोंका जोड़ अन्तिमगुणहानिके जोड़मेंसे घटाकर जो प्रमाण हो उसका आधा होता है और प्रथमगुणहानिका जोड़ गुणहानि प्रमाणसे गुणित समयबद्धप्रमाण ( गुणहानि समयप्रबद्ध) होता है।
विशेषार्थ - यहाँ त्रिकोणरचनाएँ नीचे प्रथमपंक्ति में तिर्यगुरूपसं जो लिखा गया है उसको प्रथमगुणहानिका प्रथमनिषेक कहते हैं। इसके ऊपरकी पंक्तियोंमें जो प्रमाण लिखा गया उनको प्रथमगुणहानिका द्वितीयआदिनिषेक कहते हैं तथा गुणहानिआयाम प्रमाण पंक्तिपूर्ण होनेके पश्चात् इसके ऊपर जो पंक्ति है वह द्वितीयगुणहानिका प्रथमनिषेक है और उससे ऊपरकी पंक्तिमें द्वितीयनिषेक है। इसप्रकार गुणहानिप्रमाण पंक्तियाँ पूर्ण होनेपर उसके ऊपरकी पंक्तिको तृतीयगुणहानिका प्रथम निषेक कहते हैं सो यह क्रम अन्तिमगुणहानिपर्यन्त जानना । इस अर्धका विशेष स्पष्टीकरण पूर्वगाथा के साथ संल असदृष्टिरूप त्रिकोणरचनासे स्पष्ट होता है।
अथानन्तर स्थिति के भेद कहते हैं
अंतोकोडाकोडीदित्ति सव्वे निरंतरङ्गाणा ।
उक्कस्ट्टाणादो, सपिणस्स य होंति णियमेण ।। ९४५ ।।
अर्थ - संज्ञीपञ्चेन्द्रियजीवोंके आयुकर्मबिना शेष सातक्रमकी उत्कृष्टस्थिति से लेकर अन्तः कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण जघन्यस्थितिपर्यन्त एक-एक समयक्रम क्रम लिये हुए जो निरन्तर स्थितिके भेद हैं वे संख्यातपत्यप्रमाण हैं ।
विशेषार्थ - यहाँ २० कोड़ाकोड़ीसागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले कर्मोंकी जघन्यस्थिति अन्तः कोटाकोटीसागरप्रमाण होती है तो ३० कोड़ाकोड़ीसागर स्थितिवाले कर्मों की जघन्यस्थिति कितनी होगी ? इसप्रकार त्रैराशिक करनेसे डेढ़ अन्तः कोटाकोटी होती है ।