Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan

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Page 828
________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७८९ अर्थ - बन्ध होनेके अनन्तर आबाधाकालका द्वितीयसमय होता है इसप्रकार एक-एक समय व्यतीत होनेपर आबाधाका अन्तिमसमय प्राप्त होता है तथा आबाधाकाल समाप्त होनेके पश्चात् प्रथमद्वितीय-तृतीयादिसे चरमनिषेकपर्यन्त क्रमसे निषेक निर्जीर्ण होते हैं। विशेषार्थ - प्रथमसमयमें पहला, द्वितीयसमयमें दूसरा, तृतीयसमयमें तीसरा निषेक तथा आगे इसी क्रमसे स्थितिके अन्तसमयमें अन्तिमनिषेक होता है सो उस उदयरूप समयके अनन्तर वे परमाणु कर्मस्वभावको छोड़ देते हैं ऐसा अर्थ जानना चाहिए। इसप्रकार प्रथमनिषेकसे द्वितीयनिषेक की एकसमयअधिक स्थिति दूसरेसे तीसरे की एकसमयअधिक स्थिति है सो यह एक-एकसमयअधिकरूप स्थिति चरमनिषेकपर्यन्त जानना। एकसमयप्रबद्धप्रमाण द्रव्य ही बँधता है और उतना ही एकसमयमें निर्जीर्ण होता है सो आगे इसीको कहते हैं समयपबद्धपमाणं, होदि तिरिच्छेण वट्टमाणम्मि। पडिसमयं बंधुदओ, एक्को समयप्पबद्धो दु ।।९४२॥ अर्थ - वर्तमानसमयमें विवक्षितकर्मकी आबाधारहित उत्कृष्टस्थितिमात्र गलितावशेष प्रथमनिषेकसे चरमनिषेकपर्यन्त तिर्यग्रूपसे स्थित सम्पूर्ण समयबद्धप्रमाण द्रव्य उदयमें आता है और प्रतिसमय एक-एक समयप्रबद्धप्रमाण द्रव्य बँधता है। विशेषार्थ - त्रिकोणरचनामें विवक्षित वर्तमानसमयमें विवक्षितकर्मकी आबाधा-रहित उत्कृष्टस्थितिमात्र कालके प्रमाणमें प्रतिसमयमें बँधे हुए समयप्रबद्धमें जिन निषेकों की निर्जरा हो गई उनसे बचे हुए अवशेषनिषेकोंमें प्रथमसमयप्रबद्धके अन्तिमनिषेकसे अन्तिमसमयप्रबद्धके प्रथमनिषेकपर्यन्त तिर्यचनारूप एक-एक निषेक मिलकर सम्पूर्ण एकसमयप्रबद्धप्रमाण द्रव्य होता है। प्रत्येकसमयमें एकसमयप्रबद्धका उदय होता है और प्रतिसमय एकसमयप्रबद्धका बन्ध होता है। अब सत्तारूप कर्मों के द्रव्य का प्रमाण कहते हैं सत्तं समयपबद्धं, दिवढगुणहाणिताड़ियं ऊणं । तियकोणसरूवट्ठिददव्वे मिलिदे हवे णियमा ॥९४३ ।। अर्थ - सत्तारूप द्रव्य कुछकम डेढगुणहानिसे गुणित समयप्रबद्धप्रमाण है और त्रिकोणरचनाके सर्वद्रव्यको जोड़देनेसे भी इतना ही प्रमाण नियमसे होता है। विशेषार्थ - प्रतिसमय एकसमयप्रबद्धप्रमाण द्रव्य उदय होकर भी कुछकम डेढ़गुणहानिसे

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